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________________ 150] [अनुयोगदारसूत्र प्रत्येक के साथ नाम शब्द जोड़ देने पर पूरा नाम हो जाता है / जैसे कर्कशस्पर्शनाम, मृदुस्पर्शनाम यावत् रूक्षस्पर्शनाम / पाषाण आदि में कर्कश—खुरदरास्पर्श रहता है / कोमल स्पर्ण मृदुस्पर्श कहलाता है। यह वेत्र आदि में पाया जाता है। जो अधःपतन का कारण हो और लोहे के गोलक आदि में पाया जाता है, वह गुरुस्पर्श है। जो स्पर्श प्रायः ऊर्ध्व, अधो और तिर्यक गमन में कारण हो और अर्कतुल (आक की रुई) अादि में पाया जाता है, वह लघुस्पर्श है। शीतलता-ठंडेपन का अनुभव कराने में जो हेतु है तथा वर्फ आदि में पाया जाता है, वह शीतस्पर्श है। जो उष्णता---गर्मी का बोधक, आहारादि के पकाने का कारण हो एवं अग्नि आदि के रहता है वह उष्णस्पर्ण है। परस्पर मिले हुए पुद्गलद्रव्यों के संश्लिष्ट होने का जो कारण हो और तेलादि पदार्थों में पाया जाये वह स्निग्धस्पर्श है / जो पुद्गल द्रव्यों के परस्पर प्रबन्ध का कारण हो, ऐसा भस्मादि का स्पर्श रूक्षस्पर्श है। इन स्पर्शो का जो नाम वह तत्तत् नाम बाला स्पर्शनाम समझना चाहिए। स्पर्श के उक्त पाठ भेदों के संयोगज स्पर्शों का भी इन्हीं में अन्तर्भाव हो जाने से उनका पृथक् निर्देश नहीं किया है। संस्थाननाम 224. से कि तं संठाणणामे ? संठाणणामे पंचविहे पण्णत्ते / तं जहा--परिमंडलसंठाणणामे 1 वट्टसंठाणणामे 2 तंससंठाणणामे 3 चउरंससंठाणणामे 4 आयतसंठाणणामे 5 / से तं संठाणणामे / से तं गुणणामे / (224 प्र.] भगवन् ! संस्थाननाम का क्या स्वरूप है ? |224 उ.] अायुष्मन् ! संस्थाननाम के पांच प्रकार कहे गये हैं। यथा-१. परिमण्डलसंस्थाननाम, 2. वृत्तसंस्थाननाम, 3. व्यत्रसंस्थाननाम, 4. चतुरस्रसंस्थाननाम, 5. आयतसंस्थाननाम। यह संस्थाननाम का स्वरूप है / इस प्रकार से यह गुणनाम की व्याख्या समाप्त हई जानना चाहिए। विवेचन—सूत्र में संस्थाननाम के भेदों को बतलाकर गुणनाम की वक्तव्यता की समाप्ति की सूचना दी है। संस्थान के पांच भेदों का स्वरूप प्रसिद्ध है / जो थाली, सूर्य या चन्द्रमण्डल के समान गोल हो, बीच में किंचिन्मात्र भी खाली स्थान न हो, ऐसा संस्थान परिमण्डलसंस्थान कहलाता है। जब कि वत्तसंस्थान चूडी के समान (बीच में खाली) गोल होता है। तीन कोण (कोने) वाले संस्थान को श्यन-त्रिभुज या तिकोना संस्थान कहते हैं। तीनों भुजाओं की लम्बाई चौड़ाई की भिन्नता से यह सस्थान अनेक प्रकार का हो सकता है। चतुरस्रसंस्थान में चारों कोण एवं लम्बाई-चौड़ाई समान होती है, जबकि आयतसंस्थान में चारों कोण समान होने पर भी लम्बाई अधिक और चौड़ाई कम होती है। . इस प्रकार आकारों की भिन्न-भिन्नरूपता से संस्थाननाम के मुख्य पांच भेद हैं। इनके सिवाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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