SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नामाधिकार निरूपण |149 रसनाम 222. से कि तं रसनामे ? रसनामे पंच विहे पण्णत्ते। तं जहा-तित्तरसणामे 1 कडुयरसणामे 2 कसायरसगामे 3 अंबिलरसणामे 4 महुररसणामे य 5 / से तं रसनामे / [222 प्र. भगवन् ! रसनाम का क्या स्वरूप है ? [222 उ.] आयुष्मन् ! रसनाम के पांच भेद हैं / जैसे—१. तिक्तरसनाम 2. कटु करसनाम 3. कषायरसनाम 4. ग्राम्लरसनाम 5. मधुर रसनाम / इस प्रकार से रसनाम का स्वरूप जानना चाहिये। विवेचन-सूत्र में तिक्त, कटु, कषाय, आम्ल और मधुर के भेद से रस के पांच प्रकार बतलाये है / इन रसों के गुण, धर्म, स्वभाव इस प्रकार हैं 1. तिक्तरस कफ, अरुचि, पित्त, तृषा, कुष्ठ, विष, ज्वर आदि विकारों को नष्ट करने वाला है। यह रस प्राय: नीम आदि में पाया जाता है। 2. गले के रोग का उपशमक, काली मिर्च आदि में पाया जाने वाला रस कटु करस है। 3. जो रक्तदोष आदि का नाशक है, ऐसा प्रांवला, बहेड़ा आदि में पाया जाने वाला रस कषायरस है / यह स्वभावत: रूक्ष, शीत एवं रोचक होता है / 4. इमली आदि में रहा हुआ रस ग्राम्ल रस है / यह जठराग्नि का उद्दीपक है / पित्त और कफ का नाश करता है, रुचिवर्धक है / लोकभाषा में इसको खट्टा रस कहते हैं। 5. पित्तादि का शमन करने वाला रस मधुर रस है। यह रस बालक, वृद्ध और क्षीण शक्ति वालों को लाभदायक होता है तथा खांड, शक्कर आदि मीठे पदार्थों में पाया जाता है। स्पर्शनाम 223. से कि तं फासणामे ? फासणामे अदविहे पण्णत्ते / तं जहा.-कक्खडफासणामे 1 मउयफासणामे 2 गरुयफासणामे 3 लहुयफासणामे 4 सीतफासणामे 5 उसिणफासणामे 6 गिद्धफासणामे 7 लुक्खफासणामे ८।सेतं फासणामे। [223 प्र.] भगवन् ! स्पर्शनाम का क्या स्वरूप है ? [223 उ.] आयुष्मन् ! स्पर्शनाम के आठ प्रकार कहे हैं। उनके नाम हैं-१. कर्कशस्पर्शनाम 2. मृदुस्पर्शनाम 3. गुरुस्पर्शनाम 4. लघुस्पर्शनाम 5. शीतस्पर्शनाम 6. उष्णस्पर्शनाम 7. स्निग्धस्पर्शनाम 8. रूक्षस्पर्शनाम / यह स्पर्शनाम का स्वरूप है / विवेचन-सूत्र में स्पर्शनाम के आठ प्रकारों का उल्लेख किया है। इन आठ प्रकारों में से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy