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________________ 148] [अनुयोगद्वारसूत्र इन वर्णनाम आदि के लक्ष इस प्रकार हैं__ वर्णनाम—जिसके द्वारा वस्तु अलंकृत, अनुरंजित की जाये उरो वर्ण कहते हैं। इस वर्ण का नाम वर्णनाम है / वर्ण चक्षुरिन्द्रिय का विषय है। गंधनाम—जो संघा जाये वह गंध है / यह नाणेन्द्रिय का विषय है। इस गध के नाम को गंधनाम कहते हैं। रसनाम-जो चखा जाता है वह रभ है। यह रसनेन्द्रिय का विषय है। रम का जो नाम बह रसनाम है। स्पर्शनाम-जो स्पर्णनेन्द्रिय द्वारा स्पर्श करने पर जाना जाए वह स्पर्श है और इस म्पर्श का नाम स्पर्शनाम है। संस्थाननाम-आकार, प्राकृति को संस्थान कहते हैं। इस संस्थान के नाम को संस्थाननाम कहते हैं। गुणनाम के इन पांचों भेदों का वर्णन इस प्रकार हैवर्णनाम 220. से कितं वण्णनामे? वण्णनामे पंचविहे पण्णत्ते / तं जहा-कालवण्णनामे 1 नीलवण्णनामे 2 लोहियवण्णनामे 3 हालिद्दवण्णनामे 4 सुक्किलवण्णनामे 5 / से तं वण्णनामे / 1220 प्र.] भगवन् ! वर्णनाम का क्या स्वरूप है ? {220 उ.] आयुष्मन् ! वर्णनाम के पांच भेद हैं। वे इस प्रकार-१. कृष्णवर्णनाम 2. नीलवर्णनाम 3. लोहित (रक्त) वर्णनाम 4. हारिद्र (पीत) वर्णनाम 5. शुक्लवर्णताम / यह वर्णनाम का स्वरूप है। विवेचन--सूत्र में वर्णनाम के पांच मूल भदों के नाम बताये हैं। काले, पीले, नीले प्रादि वर्ण (रंग) के स्वरूप को सभी जानते हैं / कत्थई, धूसर आदि और भी वर्ण के जो अनेक प्रकार के हैं, वे इन कृष्ण आदि पाँच मौलिक वर्गों के संयोग से निष्पन्न होने के कारण स्वतन्त्र वर्ण नहीं हैं। इसलिये उनका पृथक उल्लेख नहीं किया है। गंधनाम 221. से कि तं गंधनामे ? गंधनामे दुविहे पण्णत्ते / तं जहा–सुरभिगंधनामे य 1 दुरभिगंधनामे य 2 / से तं गंधनामे / [221 . भगवन् ! गंधनाम का क्या स्वरूप है ? [221 उ.] आयुष्मन् ! गंधनाम के दो प्रकार हैं / यथा—१. सुरभिगंधनाम 2. दुरभिगंधनाम / यह गंधनाम का स्वरूप है। विवेचन—सूत्र में गंधनाम के मूल दो भेदों का संकेत किया है। जो गंध अपनी ओर आकृष्ट करती है, वह सुरभिगंध और जो विमुख करती है, वह दुरभिगंध है। इन दोनों के संयोगज और भी अनेक भेद हो सकते हैं, परन्तु इन दोनों की प्रधानता होने से उनका पृथक् निर्देश नहीं किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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