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________________ नामाधिकार निरूपण [147 उत्पाद-व्यय रूप हैं / इन द्रव्य, गुण और पर्याय के नाम को क्रमशः द्रव्यनाम, गुणनाम और पर्यायनाम कहते हैं। क्रम से अब इन तीनों का स्वरूप बतलाते हैं / (क) द्रव्यनाम 218. से कि तं दवणामे ? दवणामे छबिहे पण्णत्ते / तं जहा-धम्मत्थिकाए 1 अधम्मस्थिकाए 2 आगासस्थिकाए 3 जीवस्थिकाए 4 पोग्गल स्थिकाए 5 अद्धासमए 6 अ / से तं दवणामे / [218 प्र.] भगवन् ! द्रव्यनाम का क्या स्वरूप है ? [218 उ.] आयुष्मन् ! द्रव्यनाम छह प्रकार का है। यथा-१. धर्मास्तिकाय, 2. अधर्मास्तिकाय, 3. आकाशास्तिकाय, 4. जीवास्तिकाय, 5. पुद्गलास्तिकाय, 6. अद्धासमय / विवेचन-सूत्र में द्रव्यनाम के रूप में विश्व के मौलिक उपादानभूत छह द्रव्यों के नाम बताये हैं। इन छह द्रव्यों में धर्मास्तिकाय से लेकर पुद्गलास्तिकाय पर्यन्त पांच मुख्य द्रव्य हैं और अद्धासमय की अभिव्यक्ति प्राय: पुद्गलों के माध्यम से होने के कारण उसकी विशेष स्थिति है। वर्तना, परिणमन, परत्व-अपरत्व ग्रादि रूपों के द्वारा उसका बोध होता है। धर्मास्तिकाय आदि छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य ही भूर्त है / अर्थात् ऐन्द्रियिक अनुभूति योग्य होने के साथ रूप, रस, गंध, स्पर्श गुणों से युक्त है, जबकि शेष द्रव्य अमूर्त-अरूपी होने से इन्द्रियगम्य नहीं हैं / इसी दृष्टि से प्रथम धर्म से लेकर जीव पर्यन्त अमूर्त द्रव्यों का और इनके बाद मूर्त पुद्गल का निर्देश किया है। धर्म से लेकर पुद्गल पर्यन्त द्रव्यों के साथ अस्तिकाय विशेषण इसलिये दिया है कि ये द्रव्य अस्ति–त्रिकालावस्थायी होने के साथ-साथ काय-बहुप्रदेशी हैं / 'अस्ति' शब्द यहाँ प्रदेशों का वाचक है, अतएव प्रदेशों के काय-पिण्ड रूप द्रव्य अस्तिकाय कहलाते हैं। श्रद्धासमय का अस्तित्व वर्तमान समय रूप होने से उसके साथ 'काय' विशेषण नहीं लगाया है। (ख) गुरगनाम 219. से कि तं गुणणामे ? __गुणणामे पंचविहे पण्णत्ते / तं जहावण्णणामे 1 गंधणामे 2 रसणामे 3 फासणामे 4 संठाणगामे 5 / [219 प्र. भगवन् ! गुणनाम का क्या स्वरूप है ? [219 उ.] आयुष्मन् ! गुणनाम के पांच प्रकार कहे हैं। जिनके नाम हैं-~१. वर्णनाम, 2. गंधनाम, 3. रसनाम, 4. स्पर्शनाम, 5. संस्थाननाम / _ विवेचन-सूत्र में बताए गए गुणनाम के पांचों भेद पुद्गलद्रव्य में पाये जाते हैं / यद्यपि धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों के अपने-अपने गुण हैं, परन्तु पुद्गलद्रव्य के सिवाय शेष द्रव्यों के अमूर्त होने से उनके गुण भी अमूर्त हैं। इस कारण संभवतः उनका उल्लेख नहीं किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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