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________________ हामाधिकार निरूपण] [11] अविसेसिए खहयरपं.दियतिरिक्खजोणिए, विसेंसिए सम्मुच्छिमखहयरपंचेदियतिरिक्खजोणिए य गम्भवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य। अविसेसिए सम्मुच्छिमखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए, विसेसिए पज्जत्तयसम्मुस्छिमखयरपंचेदियतिरिक्खजोणिए य अपज्जत्तयसमुच्छिमखयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य / ___ अविसेसिए गम्भवतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए, विसेसिए पज्जत्तयगम्भवक्कतियखहयरपंचेदियतिरिक्खजोणिए य अपज्जत्तयगम्भवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य / / [216-11] खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक अविशषित नाम है तो समूच्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक और गर्भव्यत्क्रान्तिक खेचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक विशे पित नाम रूप हैं। ___ यदि संमूछिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नाम को अविणेषित नाम माना जाये तो पर्याप्त समूच्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक और अपर्याप्त संमूच्छिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक रूप उसके भेद विशेषित नाम हैं। इसी प्रकार गर्भव्युत्क्रान्तिक खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नाम को अविशेषित माना जाये तो पर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक और अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक ये नाम विशेषित नाम कहे जायेंगे। [12] अविसेसिए मगुस्से, विसेलिए सम्मुच्छिममणसे य गम्भवक्कंतियमणुस्से य / अविसेसिए सम्मुच्छिममणूसे, विसेसिए पज्जत्तयसम्मुच्छिममणसे य अपज्जत्तगसम्मुच्छिममणूसे य। अविसेसिए गब्भवक्कंतियमणसे, विसेसिए पज्जत्तयगम्भवक्कलियमणूसे य अपज्जत्तयगन्भवक्कंतियमणूसे य। [216-12] मनुष्य इस नाम को अविशेषित (सामान्य) नाम माना जाये तो संमूच्छिम मनुष्य और मर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य यह नाम विशेषित कहलायेंगे। संमूच्छिम मनुष्य को अविशेषित नाम मानने पर पर्याप्त समूच्छिम मनुष्य और अपर्याप्त संमूच्छिम मनुष्य यह दो नाम विशेपित नाम हैं। यदि गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य को अविशेषित माना जाये तो पर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य और अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य नाम विशेषित रूप हो जायेंगे। [13] अविससिए देवे, विसेसिए भवणवासी वाणमंतरे जोइसिए वेमाणिए य / अविसेसिए भवणवासी, विसेसिए असुरकुमारे एवं नाग. सुवण्ण. विज्जु. अग्गि. दीव. उदधि. दिसा. वात. थणियकुमारे / सव्वेसि वि अविससिय-विससिय-पज्जत्तय-अपज्जसयभेया भाणियस्वा / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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