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________________ 142) [अनुमोपद्वार गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक यह नाम अविषित है और पर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक तथा अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रियतियंचयोनिक नाम विशेषित हैं। [10] अविसेसिए बलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए, विससिए चउपयलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिए य परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य / अविससिए चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए, विसेसिए सम्मुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोगिए य गन्भवतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य / अविससिए सम्मुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए, विसेसिए पन्जत्तयसम्मुग्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोगिए य अपज्जत्तयसम्मुच्छिमचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिकालजोणिए य। अविसेसिए गम्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोगिए, विसेंसिए पज्जत्तयगम्भवक्कतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य अपज्जत्तयगम्भवक्कतियच उप्पमथलयरपंधेदियतिरिक्खजोगिए य। अविसेसिए परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोगिए, विसेसिए उरपरिसप्पथलयरपंरियतिरिक्खजोणिए य भुयपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणिए य। एवं सम्मुच्छिमा पज्जत्ता अपज्जता य, गम्भवक्कंतिया वि पज्जत्ता अपज्जत्ता य भाणियख्वा / [216-10 अलबर पंचेन्द्रियतिर्यचयोनिक को अविशेषित नाम माने जाने पर चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक, परिसर्प थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक विशेषित नाम हैं। यदि चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रियतियंचयोनिक को अविणेषित माना जाये तो सम्मूर्छिम चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रियतियंचयोनिक और गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रियतिर्यचयोनिक थे भेद विशेषित नाम हैं। सम्मूर्छिम चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रिय तिर्थचयोनिक यह अविशेषित नाम हो तो पर्याप्त सम्मूर्छिम चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रिय तियंचयोनिक और अपर्याप्त सम्मूर्छिम चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक विशेषित नाम हैं। यदि गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रियतियं च योनिक नाम को अविशेषित माना जाये तो पर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक और अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पद थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक ये विशेषित नाम हैं। यदि परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक यह अविशेषित नाम है तो उसके भेद उरपरिसर्प थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक और भुजपरिसर्प थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नाम विशेषित नाम हैं। इसी प्रकार संमूर्छिम पर्याप्त और अपर्याप्त तथा गर्भव्युत्क्रान्तिक पर्याप्त, अपर्याप्त का कथन कर लेना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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