________________ नामाधिकार निरूपण 141 ___ अविसेसिए बादरपुढविकाइए, विसेसिए पज्जत्तयबादरपुढविकाइए य अपज्जत्तयवावरपुढविकाइए य। एवं आउ. तेउ. वाउ. वणस्सती. य अविसेसिए य पज्जत्तय-अपज्जयभेदेहि भाणियन्वा / [216-6] एकेन्द्रिय को विशेपित नाम माना जाये तो पृथ्वी काय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय ये विशेषित नाम हैं। ___ यदि पृथ्वीकाय नाम को अविशेषित माना जाये तो सूक्ष्मपृथ्वीकाय और बादरपृथ्वीकाय यह विशेषित नाम हैं। सूक्ष्मपृथ्वीकाय नाम को अविशेषित मानने पर पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकाय और अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकाय यह विशेषित नाम हैं / बादरपृथ्वीकाय नाम अविशेषित है तो पर्याप्न बादरपृथ्वीकाय और अपर्याप्त बादरपृथ्वीकाय यह विशेषित नाम हैं। इसी प्रकार अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय इन नामों को अविशेषित नाम माने जाने पर अनुक्रम से उनके पर्याप्त और अपर्याप्त ये विशेपित नाम हैं। [7] अविसेसिए बेइंदिए, विसेसिए यज्जत्तयबेइंदिए य अपज्जत्तय बेइंदिए य / एवं तेइंदियचरिदिया वि भाणियब्वा / [216-7 ] यदि द्वीन्द्रिय को अविशेषित नाम माना जाये तो पर्याप्त द्वीन्द्रिय और अपर्याप्त दीन्द्रिय विशेषित नाम हैं / इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय के लिये भी जानना चाहिए / [8] अविसेसिए पंचेंदियतिरिक्खजोणिए, विसेसिए जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए थलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए खयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य / [216-8] पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक को अविशेषित नाम मानने पर जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, स्थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक विशेषित नाम हैं। [9] अविसेसिए जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए, विसे सिए सम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोगिए य गम्भवतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य / / अविसेसिए सम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोगिए, विसेसिए पज्जत्तयसम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य अपज्जत्तयसमुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोगिए य / अविसेसिए गम्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए, विसे सिए पज्जत्तयगम्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य अपज्जत्तयगम्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिए य / [216-9] जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक अविशेषित नाम है तो सम्मूर्छिम जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक और गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक यह विशेषित नाम है। संमूर्छिम जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक अविशेषित नाम है तो उसके पर्याप्त संमूर्छिम जलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, अपर्याप्त संमूर्छिम जलचर पंचेन्द्रियतियं त्रयोनिक ये दो भेद विशेषित नाम हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org