________________ 140] [अनुयोगद्वारसूत्र पदार्थ अनेक हैं / अतः उन सब का बोध कराने के लिये प्रकारान्तर से पुनः द्विनाम का निरूपण करते हैं। 216. [1] अहवा दुनामे दुविहे पण्णत्ते / तं जहा--विसे सिए य 1 अविसेसिए य 2 / [266-1] अथवा अपेक्षादृष्टि से द्विनाम के और भी दो प्रकार हैं। यथा-... 1. विशेषित और अविशेषित / विवेचन-सूत्र में द्विनाम का एक और रूप स्पष्ट किया है / अविशे पित-अभेद-सामान्य और विशेषित-भेद-विशिष्ट की अपेक्षा भी द्विनाम के दो प्रकार है / इन दो प्रकारों के होने का कारण यह है--उत्तरापेक्षया पूर्व अविशेष और भेद प्रधान होने से उत्तर विशेष है। जो निम्नलिखित सूत्रों से स्पष्ट है-- [2] अविसे सिए दवे, विसेसिए जीवदच्चे य अजीवदव्वे य / [216-2] द्रव्य यह अविशे पित नाम है और जीवद्रव्य एवं ग्रजी व द्रव्य ये विशेषित नाम हैं। [3] अविसे सिए जीवदव्वे, विसेसिए णेरइए तिरिक्खजोणिए मणुस्से देवे / [216-3] जीवद्रव्य को अविशेधित नाम माने जाने पर नारक, तिर्यंचयोनिक, मनाय और देव ये विशेषित नाम हैं। [4] अविसेसिए णेरइए, विसेसिए रयणप्पभाए सक्करप्पभाए वालुयप्पभाए पंकप्पभाए धमपभाए तमाए तमतमाए। अविसेसिए रयणप्पभापुढविणेरइए, विसेसिए पज्जत्तए य अपज्जत्तए य। एवं जाव अविसेसिए तमतमापुढविणेरइए, विसेसिए पज्जत्तए य अपज्जत्तए य। [216-4] नारक अविशेषित नाम है और रत्नप्रभा का नारक, शर्कराप्रभा का नारक. वालुकाप्रभा का नारक, पंकप्रभा का नारक, धूमप्रभा का नारक, तमःप्रभा का नारक, तमस्तमःप्रभा का नारक यह विशेषित द्विनाम हैं। रत्नप्रभा का नारक, इस नाम को अविशेषित माना जाए तो रत्नप्रभा का पर्याप्त नारक और रत्नप्रभा का अपर्याप्त नारक विशेषित नाम होंगे यावत् नमस्तमःप्रभापृथ्वी के नारक को अविशेषित मानने पर उसके पर्याप्त और अपर्याप्त ये विशेषित नाम कहलाएँगे। [5] अविसेसिए तिरिक्खजोणिए, विसेसिए एगिदिए बेइंदिए तेइं दिए चरिदिए पंचिदिए / (216-5 तिर्यनयोनिक इस नाम को अविशेषित माना जाए तो एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय ये पांच विशेषित नाम हैं। [6] अविसेसिए एगिदिए, विसेसिए पुढविकाइए आउकाइए तेउकाइए बाउकाइए वणस्सइकाइए। अक्सेिसिए पुढ बिकाइए, विसेसिए सुहुमपढविकाइए य बादरपुढविकाइए य / अक्सेिसिए सुहुमपुढविकाइए, विसेसिए पज्जत्तयसुहुमपुढविकाइए य अपज्जत्तयसुहुमपुढविकाइए य। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org