________________ 136) [अनुयोगद्वार सूत्र [207-2 उ.] अायुष्मन् ! 1. प्रौदयिकभाव, 2. प्रौपशमिकभाव, 3. क्षायिकभाव, 4. क्षायोपशमिकभाव 5. पारिणामिक भाव, 6. सान्निपातिकभाव, इस क्रम से भावों का उपन्यास करना पूर्वानुपूर्वी है। [3] से कि तं पच्छाणपन्वी ? पच्छाणुपुच्ची सन्निवातिए 6 जाव उदइए 1 / से तं पच्छाणपुवी। [207-3 प्र.] भगवन् ! पश्चानपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [207-3 उ.] आयुग्मन ! सान्निपातिकभाव से लेकर प्रौदयिकभाव पर्यन्त भावों को व्युत्क्रम से स्थापना करना पश्चानुपूर्वी है। [4] से कि तं अशाणपत्वी ? अणाणुपुन्वी एयाए चेव एगादियाए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए सेढीए अन्नमनभासो दुरूव्रणो / से तं अणाणुपुछी / से तं भावाणुयुची / से तं आणुपुत्वी त्ति पदं समत्तं / [207-4 प्र.] भगवन् ! अनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [207-4 उ.] अायुष्मन् ! एक से लेकर एकोत्तर वृद्धि द्वारा छह पर्यन्त की श्रेणी में स्थापित संख्या का परस्पर गुणाकार करने पर प्राप्त राशि में से प्रथम और अंतिम भंग को कम करने पर शेष रहे भंग अनानुपूर्वी हैं / इस प्रकार से भाव-अनानुपूर्वी का वर्णन पूर्ण हुआ और इसके साथ ही उपक्रम के प्रानुपूर्वी नामक प्रथम भेद की वक्तव्यता भी समाप्त हुई। विवेचन—सूत्र में भावानुपूर्वी का स्वरूप बतलाया है। वस्तु के परिणाम (पर्याय) को भाव कहते हैं / प्रस्तुत भाव अन्तःकरण की परिणति विशेष रूप हैं। भाव जीव और अजीव दोनों में पाये जाते हैं, परन्तु प्रसंग होने से यहाँ जीब से संबद्ध भावों को ग्रहण किया है, अर्थात् ये प्रौदयिक प्रादि भाव जीव के परिणाम विशेष हैं / इन परिणाम रूप भावों की परिपाटी को भावानुपूर्वी कहते हैं। भावों का क्रमविन्यास -इस शास्त्र में नारकादि चारों गतियां औदयिकभाव रूप से कही जाने वाली हैं और प्रौदयिकभाव रूप नरकादि गतियों के होने पर ही शेष प्रौपशमिक आदि भाव यथासंभव उत्पन्न होते हैं / इसी कारण उसका सर्वप्रथम उपन्यास किया है और इसके बाद अवशिष्ट पांच भावों का। अवशिष्ट पाच भावों में भी प्रौपशमिक भाव अल्प विषय वाला है / इसलिये प्रथम सौपशमिक भाव का और प्रौपशमिक की अपेक्षा अधिक विषय वाला होने से औपशमिक के बाद क्षायिकभाव का विन्यास किया है। इसके अनन्तर विषयों की तरतमता का पाश्रय करके क्रम से क्षायोपशमिक और पारिणामिक भाव का पाठ रखा है / इन पूर्वोक्त भावों के द्विकादि संयोगों से सान्निपातिकभाव उत्पन्न होता है / इससिये अब से अंत में सान्निपातिकभाव का उपन्यास किया गया है / __इस प्रकार का क्रमविन्यास पूर्वानुपूर्वी रूप है और व्युत्क्रम पश्चानुपूर्वी है और आदि तथा अंत भंग को छोड़कर शेष भंग अनानुपूर्वी हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org