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________________ नामाधिकार निरूपण] [137 इस प्रकार से भावानुपूर्वी का वर्णन जानना चाहिये / पूर्व में नामानुपूर्वी से लेकर भावानुपूर्वी नक जो दस ग्रानुपूवियों के नाम गिनाये थे, उनका वर्णन समाप्त हो चुका है, यह सूचना सूत्र में से तं प्राणुपुव्वी' पद द्वारा दी गई है तथा 'ग्राणुपुब्बि ति पदं समत्त' पद द्वारा यह बतलाया है कि उपक्रम के प्रथम भेद प्रानुपूर्वी की बक्तव्यता भी समाप्त हुई। अब उपक्रम के दूसरे भेद नाम का वर्णन करते हैं। नामाधिकार की भूमिका 208. से कि तं गामे ? णामे दसविहे पण्णत्ते / तं जहा--एगणामे 1 दुणामे 2 तिणामे 3 चउणामे 4 पंचणामे 5 छणामे 6 सत्तणामे 7 अट्ठणामे 8 णवणामे 9 दसणामे 10 / | 208 प्र. भगवन् ! नाम का क्या स्वरूप है ? | 208 उ.| अायुष्मन् ! नाम के दस प्रकार हैं। वे इस तरह---१. एक नाम, 2. दो नाम, 3. तीन नाम. 4. चारनाम, 5. पांच नाम, 6. छह नाम, 7. सात नाम, 8. पाठ नाम, 9, नो नाम. 10. दम नाम / विवेचन----उपक्रम के द्वितीय भेद नाम की प्रमपणा की भूमिका रूप यह सूत्र है। नाम का लक्षण--- जीव, अजीव रूप किसी भी वस्तु का अभिधायक-वाचक शब्द नाम कहलाता है।' इस नाम के एक, दो, तीन आदि प्रकारों से दस भेद हैं / जिस एक नाम से समस्त पदार्थों का कथन हो जाए, वह एक नाम है / जैसे सत् / ऐसा कोई भी पदार्थ नहीं जो सत्ता से विहीन हो अतः इस सत् नाम से लोकवर्ती समस्त पदार्थो का युगपत् कथन हो जाने से सत् एक नाम का उदाहरण है। इसी प्रकार जिन दो, तीन, चार, यावत् दस नामों से समस्त विवक्षित पदार्थ कहने योग्य वनते हैं वे क्रमशः दो से लेकर दस नाम तक जानना चाहिए / अब कम से एक, दो ग्रादि नामों के स्वरूप का निर्देश करते हैं। 1. एकनाम 209. से कि तं एगणामे ? एगणामे णामाणि जाणि काणि वि दव्वाण गुणाण पज्जवाणं च / तेसि आगमनिहसे नाम ति परूविया सण्णा // 17 // से तं एगणामे। 1. जं वत्थुशोभिहाणं पज्जयभेयाणसारि तं णामं / पइभेअं जं नमई पइभेअं जाइ जं भणिअं॥ अनुयोगवत्ति, पत्र 104 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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