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________________ भानुपूर्वी निरूपण] [135 असादिकों में स्खलमा होने पर "मिथ्या दुष्कृत' दिया जाता है / अत: इच्छाकार के बाद मिथ्याकार का पाठ रखा है। और मिथ्याकार ये दोनों गरुवचनों पर विश्वास रखने पर शक्य है. अतः मिथ्याकार के बाद तथाकार का विन्यास किया है / गुरुवचन को स्वीकार करके भी शिष्य का कर्तव्य है कि जब यह उपाश्रय से बाहर जाए तो अाज्ञा लेकर जाए। इस तथ्य को स्पष्ट करने के लिये तथाकार के बाद आवश्यकी का पाठ रखा है। बाहर गया हया शिष्य नषेधिकी पूर्वक ही उपाश्रय में प्रवेश करे / यह संकेत करने के लिये अावश्यकी के बाद नैषेधिकी का उपन्यास किया है। उपाश्रय में प्रविष्ट शिष्य जो कुछ भी करे वह गुरु की आज्ञा लेकर करे / यह बताने के लिए नषेधिकी के बाद आप्रच्छना का पाठ रखा है। किसी कर्त्तव्य कार्य को करने के लिये शिष्य गुरु से आज्ञा ले और वे उस कार्य को न करने की आज्ञा दें और कार्य अत्यावश्यक हो तो कार्य प्रारंभ करने के पूर्व पुन: गुरु से प्राज्ञा ले, यह बताने के लिए प्राप्रच्छना के अनन्तर प्रतिप्रच्छना का विन्यास किया है। गुरु की आज्ञा प्राप्त कर अशनादि लाने वाला शिष्य उसके परिभोग के लिये अन्य साधुओं को सादर आमंत्रित करे, इस बात को बताने के लिये प्रतिप्रच्छना के बाद छंदना का पाठ रखा है। गृहीत आहारादि में ही छन्दना होती है, परन्तु अगृहीत आहारादि में निमंत्रणा होती है, इसीलिये छन्दना के बाद निमंत्रणा का विन्यास किया है। इच्छाकार से लेकर निमंत्रणा तक की सभी समाचारी गुरुमहाराज की निकटता के बिना नहीं की जा सकती है / इसका संकेत करने के लिये सबसे अंत में उपसंपत् का उपन्यास किया है / समाचारी-पानुपूर्वी का यह स्वरूप है / अब आनुपूर्वी के अंतिम भेद भावानुपूर्वी का कथन करते हैं / भावानुपूर्वीप्ररूपरणा 207. [1] से किं तं भावाणुपुन्वी ? भावाणुपुब्बी तिविहा पण्णत्ता / तं जहा-पुवाणुपुब्बी 1 पच्छाणुपुव्वी 2 अणाणुपुवी 3 / [207-1 प्र.] भगवन् ! भावानपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [207-1 उ.] आयुष्मन् ! भावानपुर्वी तीन प्रकार की है / यथा- 1. पूर्वानुपूर्वी, 2. पश्चानुपूर्वी, 3. अनानुपूर्वी / [2] से कि संपुधाणुपुग्यो ? पुवाणुपुरधी सबइए 1 उपसमिए 2 खतिए 3 खओक्समिए 4 प्रारिणामिए 5 सन्निवातिए 6 / से तं पुयाणुपुब्धी।। [207-2 प्र.] 'भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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