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________________ 130] [अनुयोगद्वारसूत्र इन ऋषभ आदि के नामोच्चारण में ऋषभनाथ सबसे प्रथम उत्पन्न हुए हैं, इसलिये उनका प्रथम नामोच्चारण किया है / तदनन्तर जिस क्रम से अजित प्रादि हुए उसी क्रम से उनका उच्चारण किया है। पश्चानुपूर्वी में वर्धमान को ग्रादि करके ऋषभ पद को अंत में उच्चारित किया जाता है। एक से लेकर चौवीस अंकों का परस्पर गुणा करने पर जो राशि उत्पन्न हो, उसमें प्रादि-अंत के दो भंगों को कम करने पर शेष रहे भंग अनानुपूर्वी हैं / ऋषभ आदि के उत्कीर्तन का कारण-इस शास्त्र में प्रावश्यक का प्रकरण होने पर भी अनानुपूर्वी में सामायिक आदि का उत्कीर्तन न कहकर प्रकरणबाह्य ऋषभ आदि का उत्कीर्तन करने का कारण यह है कि यह शास्त्र सर्वव्यापक है / इसी बात का समर्थन करने के लिये ऋषभ आदि का उत्कीर्तन किया है और उनके नाम का उच्चारण करना इसलिये युक्त है कि वे तीर्थकर्ता हैं। इनके नाम का उच्चारण करने वाला श्रेय को प्राप्त कर लेता है। शेष सूत्रस्थ पदों की व्याख्या सुगम्य है / गरणनानुपर्वो प्ररूपरणा 204. [1] से कि तं गणणाणुपुच्ची ? गणणाणुपुवी तिविहा पण्णत्ता / तं जहा—पुवाणुपुत्री 1 पच्छाणपस्वी 2 प्रणाणुपुयी 3 / [204-1 प्र.] भगवन् ! गणनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [204-1 उ.] आयुष्मन् ! गणनानुपूर्वी के तीन प्रकार हैं। वे इस तरह---१. पूर्वानुपूर्वी 2. पश्चानुपूर्वी 3. अनानुपूर्वी / [2] से कि तं पुवाणुपुब्बी ? पुवाणुपुवी एक्को दस सयं सहस्सं दससहस्साई सयसहस्सं बससयसहस्साई कोडी दस कोडीनो कोडीसयं दसकोडीसयाइं से तं पुवाणुपुथ्वी / [204-2 प्र. भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? 204-2 उ.] अायुष्मन् ! एक, दस, सौ, सहस्र (हजार), दम सहस्र, शतसहस्र (लाख), दसशतसहस्र, कोटि (करोड़), दस कोटि, कोटिशत (अरब), दस कोटिशन (दस अरब), इस प्रकार से गिनती करता पूर्वानुपूर्वी है। [3] से कि तं पच्छाणुपुथ्वी ? पच्छाणुपुल्वी दसकोडिसयाई जाव एक्को / से तं पच्छाणुपुल्यो। [204-3 प्र.] भगवन् ! पश्चानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [204-3 उ.] आयुष्मन् ! दस अरब से लेकर व्युत्क्रम से एक पर्यन्त की गिनती करना पश्चानुपूर्वी है। [4] से किं तं प्रणाणुपुवी ? अणाणुपुब्बी एयाए चेव एगादियाए एगुत्तरियाए दसकोडिसयगच्छगयाए सेढोए अन्नमनभासो दुरूवूणो / से तं अणाणुपुब्बी / से तं गणणाणुपुवी / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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