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________________ आनुपूर्वी निरूपण] [129 |203-5 प्र. भगवन् ! उत्कीर्तनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [203-1 उ.] आयुष्मन् ! उत्कीर्तनानुपूर्वी के तीन प्रकार हैं। यथा-१. पूर्वानुपूर्वी, 2. पश्चानुपूर्वी, 3, अनानुपूर्वी / [2] से किं तं पुव्वाणपुवी ? पुवाणुपुवी उसभे 1 अजिए 2 संभवे 3 अभिणंदणे 4 सुमती 5 पउमप्पभे 6 सुपासे 7 चंदप्पहे 8 सुविही 9 सीतले 10 सेज्जसे 11 वासुपुज्जे 12 विमले 13 अणते 14 धम्मे 15 संती 16 कुथू 17 अरे 18 मल्ली 19 मुणिसुव्वए 20 णमी 21 अरि?णेमी 22 पासे 23 वद्धमाणे 24 / से तं पुवाणुपुवी। 1203-2 प्र.] भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? 203-2 उ.] अायुष्मन् ! पूर्वानुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिये--१. ऋषभ, 2. अजित, 3. संभव, 4. अभिनन्दन, 5. सुमति, 6. पद्मप्रभ, 7. सुपार्श्व, 8. चन्द्रप्रभ, 9. सुविधि, 10. शीतल, 11. श्रेयांस, 12, वासुपूज्य, 13. विमल, 14. अनन्त, 15. धर्म, 16. शांति, 17. कुन्थ, 18. अर, 19. मल्लि, 20. मुनिसुव्रत, 21. नमि, 22. अरिष्टनेमि, 23. पार्व, 24. वर्धमान, इम क्रम से नामोच्चारण करने को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं। [3] से कि तं पच्छाणुपुटवी ? पच्छाणुपुवी बद्धमाणे 24 पासे 23 जाव उसमे 1 / से तं पच्छाणुपुवी / 203-3 प्र. | भगवन् ! पश्चानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? 1203-3 उ.] मायुग्मन् / व्युत्क्रम से अर्थात् वर्धमान, पार्श्व से प्रारंभ करके प्रथम ऋपभ पर्यन्न नामोच्चारण करना पश्चानुपूर्वी है / [4] से कि तं प्रणाणपुवी ? अणाणुयुध्वी एयाए चेव एगादियाए एगुत्तरियाए चउधीसगच्छगयाए सेढीए अगणमण्णन्भासो दुरूवणे / से तं प्रणाणुपुवी / से तं उक्कित्तणाणुपुवी। [203-4 प्र.] भगवन् ! अनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? |203-4 उ.| प्रायुष्मन् ! इन्हीं की (ऋषभ से वर्धमान पर्यन्त की एक से लेकर एक-एक की वद्धि करके चौवीस संख्या की श्रेणी स्थापित कर परस्पर गुणाकार करने से जो राशि बनती है उसमें मे प्रथम और अंतिम भंग को कम करने पर शेष भंग अनानुपूर्वी हैं। विवेचन--सूत्र में उत्कीर्तनापूर्वी की व्याख्या की है। नाम के उच्चारण करने को उत्कीर्तन कहते हैं और इस उत्कीर्तन की परिपाटी उत्कीर्तनानुपूर्वी कहलाती है। ऋषभ, अजित प्रादि का क्रम से वर्धमान पर्यन्त परिपाटी रूप में नामोच्चारण करना उत्कीर्तनानुपूर्वी का प्रथम भेद पूर्वानुपूर्वी है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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