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________________ आनुपूर्वी निरूपण [117 _ विवेचन—इस सूत्रपाठ की व्याख्या स्पष्ट है। द्रव्यानुपूर्वी की तरह कालानुपूर्वा के प्रसंग में भी छब्बीस भंग जानना चाहिये / वे छब्बीस भंग इस प्रकार हैं--- पानपूर्वी आदि एकवचनान्त तीन पद के असंयोगी तीन भंग हैं और इसी प्रकार बहुवचनान्त पद के तीन भंग बनते हैं। इस प्रकार पृथक-पृथक छह भंग हो जाते हैं और संयोगपक्ष में इन तीनों पदों के द्विसंयोगी भग तीन होते हैं। इनमें एक-एक भंग में दो-दो का संयोग होने पर एकवचन और बहुवचन को लेकर चार-चार भंग हो जाते हैं। इस प्रकार तीनों भंगों के द्विकसंयोगी कुल भंग बारह बनते हैं तथा त्रिकसंयोग में एकवचन और बहुवचन को लेकर अाठ भंग बनते हैं। इस प्रकार सब भंग मिलाकर (6+12+8=26) छब्बीस होते हैं / द्रव्यानुपूर्वी के प्रसंग में इनके नाम बताये जा चके हैं। तदनसार यहाँ भी वही नाम समझ लेना चाहिये। अब प्रयोजनरूप में संकेतित भगोपदर्शनता का निरूपण करते हैं। (ग) भंगोपदर्शनता 188. से कि तं गम-ववहाराणं भंगोवदसणया ? गम-ववहाराणं भंगोवदंसणया तिसमयठितीए आणुपुवी एगसमयठितीए अणाणपुथ्वी अणाणुपुवी दुसमयहितीए अवत्तववए, तिसमद्वितीयाओ आणुपुवीओ एगसमयद्वितीयाओ अणाणुपुवीओ दुसमय द्वितीयाई अवत्तब्वयाई / एवं दव्वाणुगमेणं ते चेव छव्वीसं भंगा भाणियव्वा, जाव से तं गम-ववहाराणं भंगोवदसणया। (188 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता का क्या स्वरूप है ? 1188 उ.] आयुष्मन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता का स्वरूप इस प्रकार है-.. त्रिसमयस्थितिक एक-एक परमाणु आदि द्रव्य प्रानुपूर्वी है, एक समय की स्थिति वाला एक-एक परमाण प्रादि द्रव्य अनान पर्वी है और दो समय की स्थिति वाला परमाण आदि द्रव्य प्रवक्तव्यक है। तीन समय की स्थिति वाले अनेक द्रव्य 'पानुपूवियां' इस पद के वाच्य हैं। एक समय की स्थिति वाले अनेक द्रव्य 'अनानपूर्वियां तथा दो समय की स्थिति वाले द्रव्य 'अवक्तव्य' पद के वाच्य हैं। इस प्रकार यहाँ भी द्रव्यानुपूर्वी के पाठानुरूप छब्बीस भंगों के नाम जानने चाहिए, यावत् यह भगोपदर्शनता का प्राशय है / विवेचन--सूत्रार्थ का स्पष्टीकरण इस प्रकार है तीन समय की स्थिति वाला, एक समय की स्थिति वाला और दो समय की स्थिति वाला एक-एक व्यक्ति रूप परमाणु आदि अनन्ताणुक पर्यन्त द्रव्य क्रमशः प्रानुपूर्वी, अनानपूर्वी और प्रवक्तव्यक है। यह तो हुया एकवचनापेक्षा प्रानुपूर्वी प्रादि पद का वाच्यार्थ, लेकिन जब यही तीन समय प्रादि की स्थिति वाले पूर्वोक्त द्रव्य व्यक्ति अनेक रूप में विवक्षित होते हैं तब वे 'आनुपवियां' आदि बहुवचनान्त पद के वाच्य हो जाते हैं। यह असंयोग पक्ष में एकवचन के तीन और बहुवचन के तीन, कुल छह भंगों का कथन है। लेकिन प्रस्तुत सूत्र में संयोगज भंगों की वाच्यार्थरूपता का उल्लेख नहीं किया है / उन भंगों को द्रव्यानपूर्वी के समान समझ लेना चाहिए। यह मंगोपदर्शनता की वक्तव्यता है। अब समवतार का कथन करते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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