________________ 116] अनुयोगद्वारसूत्र आनुपूर्वी में आद्य इकाई तीन समय है और चरम असंख्यात समय है। लेकिन अनानुपूर्वी और प्रवक्तव्यक में यह विशेषता है अनानुपूर्वी में द्रव्य चाहे परमाणु से लेकर अनन्ताणुक रूप हो, लेकिन उसकी स्थिति यदि एक समय की है तो वह कालापेक्षया अनानुपूर्वी है / इसी प्रकार यदि उसकी स्थिति दो ममय प्रमाण है वह दो समय की स्थिति वाला है तो वह प्रवक्तव्यक द्रव्य है / एक-बहुवचनान्तता का कारण-सूत्रकार ने एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा आनुपूर्वी आदि का निर्देश किया है। उसका कारण यह है कि तीन ग्रादि समयों की स्थिति वाले प्रानुपूर्वी द्रव्य एक-एक व्यक्ति रूप भी हैं और अनेक अनन्त व्यक्ति रूप भी हैं। इसीलिये तीन आदि समय की स्थिति वाले एक द्रव्य को एक प्रानुपूर्वी, एक समय की स्थिति वाले एक द्रव्य को एक अनानपूर्वी और द्विसमय की स्थिति वाले एक द्रव्य को एक प्रवक्तव्यक कहा है। लेकिन जब वही ग्रानपूर्वी आदि द्रव्य विशेष-भेद की विवक्षा से अनेक-व्यक्ति रूप होते हैं तब वहुवचन की अपेक्षा प्रानुपूर्वियों, अनानुपूवियों और अबक्तव्यको रूप कहलाते हैं।' सूत्र में अर्थपदप्ररूपणता के प्रयोजन रूप में भंगसमुत्कीर्तनता का संकेत किया है, अत: अव भंगसमुत्कीर्तनता का निर्देश करते हैं / (ख) भंगसमुत्कीर्तनता 186. से किं तं गम-बवहाराणं भंगसमुक्कित्तणया ? गम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तगया अस्थि आणुपुन्वी अस्थि अणाणुपुब्धी अस्थि अवत्तवए, एवं दव्वाणुपुग्विगमेणं कालाणुपुव्वीए वि ते चेव छस्वीसं भंगा भाणियच्या नाव से तं गम-बवहाराणं भंगसमुक्कित्तणया। [168 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसंमत भंगसमुत्कीर्तनता का क्या स्वरूप है ? 186 उ.] आयुष्मन् ! अानुपूर्वी है, अनानुपूर्वी है, प्रवक्तव्यक है, इस प्रकार द्रव्यानुपूर्वीवत् कालानुपूर्वी के भी 26 भंग जानना चाहिये यावत् यह नैगम व्यवहारनयसंमत भंगसत्कीर्तनता का स्वरूप है। 187. एयाए णं णेगम-ववहाराणं जाव कि पओयणं ? एयाए णं णेगम-बवहाराणं जाव भंगोवदंसणया कज्जति / [187 प्र.] भगवन् ! इस नैगम-व्यवहारनयसंमत यावत् ( भंगसमुत्कीर्तनता का ) क्या प्रयोजन है ? {187 उ.] आयुष्मन् ! इस नैगम-व्यवहारनयसंमत यावत् ( भंगसमुत्कीर्तनता ) से भंगोपदर्शनता की जाती है। 1. सूत्र संख्या 185 के स्थान पर किसी-किसी प्रति में निम्नलिखित सूत्र पाठ है एपाए ण नेगम-व्यवहाराणं अट्टमयपरूबणयाए कि पोअणं? एमाए णं णेगम-बवहाराणं प्रपयपरूनणयाए अंगम-ववहा राणं भंगसमुक्त्तिणया कज्जई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org