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________________ आनुपूर्वो निरूपण] [115 [184 उ.] आयुष्मन् ! (नगम-व्यवहारनयसंमत) अर्थपदप्ररूपणता का स्वरूप इस प्रकार है-तीन समय की स्थिति वाला द्रव्य आनुपूर्वी है यावत् दस समय, संख्यात समय, असंख्यात समय की स्थितिवाला द्रब्य प्रानुपूर्वी है। एक समय की स्थिति वाला द्रव्य अनानुपूर्वी है / दो समय की स्थिति वाला द्रव्य अवक्तव्यक है। तीन समय की स्थिति वाले अनेक द्रव्य प्रानुपूवियां हैं यावत् संख्यातसमयस्थितिक, असंख्यातसमयस्थितिक द्रव्य अानुपूर्वियां हैं। एक समय की स्थिति वाले अनेक द्रव्य अनेक अनानुपूर्वियां हैं। दो समय की स्थिति वाले अनेक द्रव्य अनेक अवक्तव्यक रूप हैं। इस प्रकार से नैगम-व्यवहारनयसंमत अर्थपदप्ररूपणता का स्वरूप जानना चाहिये / 185. एयाए णं णेगम-ववहाराणं अट्टफ्यपरूवणयाए जाव भंगसमुक्कित्तणया कज्जति। [185] इस नैगम-व्यवहारनयसंमत अर्थपदप्ररूपणता के द्वारा यावत् भंगसमुत्कीर्तनता की जाती है। विवेचन--इन दो सूत्रों में नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी के पहले भेद अर्थपदप्ररूपणता का प्राशय और प्रयोजन बताया है। अर्थपदप्ररूपणता के प्रसंग में प्रयुक्त पानपूर्वी, अनानपूर्वी एवं प्रवक्तव्यक शब्द के अर्थ पूर्व में स्पष्ट किये जा चुके हैं। अतएव काल के वर्णन के प्रसंग में जिस द्रव्य की स्थिति कम से कम तीन समय की है, वह त्रिसमयस्थितिक द्रव्य आनुपूर्वी है। ऐसा द्रव्य परमाणु, द्विप्रदेशिक, त्रिप्रदेशिक यावत् संख्यात, असंख्यात और अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध भी हो सकता है। परन्तु उसकी स्थिति कम से कम तीन समय की होनी चाहिये। अधिक-से-अधिक असंख्यात समय की स्थिति वाला द्रव्य भी प्रानुपूर्वी रूप कहा जाएगा। __ यद्यपि क्षेत्रानुपूर्वी की तरह कालानुपूर्वी के प्रसंग में भी उल्लेख तो द्रव्यविशेष का है, परन्तु यहाँ समयत्रय आदि रूप कालपर्याय से युक्त द्रव्य ग्रहण किये हैं। इस प्रकार काल की तीन प्रादि समय रूप पर्याय और उन पर्यायों वाले द्रव्य में अभेद का उपचार करके एवं कालपर्याय को प्रधान मानकर कालपर्यायविशिष्ट द्रव्य में कालानुपूर्वी जानना चाहिये / अनन्तसामयिक कालानुपूर्वी क्यों नहीं ?-सूत्र में तीन समय से लेकर असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्य को कालापेक्षया आनुपूर्वी रूप में ग्रहण किया है, क्योंकि स्वभाव से ही किसी भी द्रव्य की अनन्त समय की स्थिति नहीं होती है। अर्थात् ऐसा कोई भी द्रव्य नहीं जिसकी स्थिति अनन्त समय की हो। इसीलिये अनन्त समय की स्थिति वाली कालानुपूर्वी का यहाँ उल्लेख नहीं किया गया है। अनानुपूर्वी और अवक्तव्य विषयक विशेषता-पानुपूर्वी में तो त्रिसमय स्थितिक से लेकर असंख्यातसमयस्थितिक पर्यन्त परमाणु आदि द्रव्यों को प्रानुपूर्वी के रूप में ग्रहण किया है। अर्थात् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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