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________________ 114] [अनुयोगद्वारसूत्र 181. तत्व णं जाता ओवाणिहिया सा ठप्पा / [181] इनमें से (अल्प विषय बाली होने से अभी विवेचन न करने के कारण) औपनिधिको कालानुपूर्वी स्थाध्य है / तथा--- 182. तत्थ णं जा सा अणोवणिहिया सा दुविहा पण्णत्ता / तं जहा-णेगम-ववहाराणं 1 संगहस्स य 2 // [182] अनोपनिधिको कालानुपूर्वी दो प्रकार की कही गई है---१ नैगम-व्यवहारनयसंमत और 2 संग्रहनयसम्मत। विवेचन यह सूत्रत्रय कालानुपूर्वी के वर्णन करने की भूमिका रूप हैं। अब सूत्रगत संकेतानुसार प्रथम नैगम-व्यवहारनयसंमत अनोपनिधिको कालानुपूर्वी का विवेचन प्रारंभ करते हैं / नेगम-व्यवहारनयसंमत अनौपनिधिको कालानुपूर्वी 183. से कि तं गम-ववहाराणं अणोवणिहिया कालाणुपुग्यो ? गम-ववहाराणं अणोवणिहिया कालाणुपुटवी पंचविहा पण्णता / तं जहा-अटुपयपरूवणया 1 भंगसमुक्कित्तणया 2 भंगोवदसणया 3 समोतारे 4 अणुगमे 5 / [183 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसंमत अनौपनिधिको कालानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [183 उ.] आयुष्मन् ! (नैगम व्यवहारनयसंमत) अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी के पांच प्रकार कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं- अर्थपदप्ररूपणता, 2 भंगसमुत्कीर्तनता, 3 भंगोपदर्शनता, 4 समवतार, 5 अनुगम। विवेचन-सूत्रोक्त अर्थपदप्ररूपणता प्रादि के लक्षण पूर्व में बतलाये जा चुके हैं। अतएव प्रसंगानुरूप अब उनका मंतव्य स्पष्ट करते हैं। (क) अर्थपदप्ररूपणता 184. से कि तं गम-ववहाराणं अट्ठपदपरूवणया ? गम-ववहाराणं अट्ठपदपरूवणया तिसमयदिईए आणुपुन्वी जाव दससमयढिईए आणुपुब्बी संखेज्जसमयट्टिईए आणुपुब्धी असंखेज्जसमद्वितीए आणुपुत्वी। एगसमय द्वितीए अणाणुपुवी। दुसमयट्टिईए अवत्तन्वए। तिसमय द्वितीयाओ आणुयुध्वीओ जाव संखेज्जसमद्वितीयाओ आणुपुथ्वीओ असंखेज्जसमयद्वितीयाओ आणुपुत्वोओ। एगसमय द्वितीयाओ अणाणुपुत्वीओ। दुसमयट्टिईयाई अवत्तन्वयाई। से तं गम-ववहाराणं अट्ठपयपरूषणया। [184 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसंमत अर्थपदप्ररूपणता का क्या स्वरूप है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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