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________________ 106] [अनुयोगद्वारसूत्र अब क्षेत्रानुपूर्वी के दूसरे भेद प्रोपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वी की प्ररूपणा प्रारम्भ करते हैं। इसके दो प्रकार हैं-विशेष और सामान्य / बहुवक्तव्य होने से पहले विशेषापेक्षया वर्णन करते हैं। औपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वी की विशेष प्ररूपणा 160. से कितं ओवणिहिया खेत्ताणपुवी ? ओणिहिया खेत्ताणुपुत्वी तिविहा पण्णत्ता। तं जहा---पुव्वाणुपुब्यो 1 पच्छाणुपुब्धो 2 अणाणुपुठवी 3 / [160 प्र.] भगवन् ! प्रोपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [160 उ.] आयुष्मन् ! औषनिधिको क्षेत्रातुपूर्वी के तीन भेद हैं। वे इस प्रकार-१. पूर्वानुपूर्वी, 2. पश्चानुपूर्वी और 3. अनानुपूर्वी / 161. से कि तं पुवाणुपुवी ? पुयाणुगुब्धी अहोलोए 1 तिरियलोए 2 उड्ढलोए 3 / से तं पुन्वाणुपुव्वी। [161 प्र.] भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [161 उ.] आयुष्मन् ! 1. अधोलोक, 2. तिर्यक्लोक और 3. ऊवलोक, इस क्रम से (क्षेत्र-लोक का) निर्देश करने को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं। 162. से कि तं पच्छाणुपुदी ? पच्छाणुपुन्वी उड्डलोए 3 तिरियलोए 2 अहोलोए 1 / से तं पच्छाणुपुव्वी / [162 प्र.] भगवन् ! पश्चानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [162 उ.] अायुष्मन् ! पूर्वानुपूर्वी के क्रम के विपरीत 1. ऊर्ध्वलोक, 2. तिर्यक्लोक, 3. अधोलोक, इस प्रकार का क्रम पश्चानुपूर्वी है / 163. से कि तं अणाणुपुब्बी ? अणाणुपुव्वी एयाए चेव एगादियाए एगुत्तरियाए तिगच्छगयाए सेढोए अनमन्नम्भासो दुरूवणो / से तं अणाणुपुत्वी। [163 प्र.] भगवन् ! अनानुपूर्वी किसे कहते हैं ? [163 उ.] आयुष्मन् ! एक से प्रारम्भ कर एकोत्तर वृद्धि द्वारा निर्मित्त तीन पर्यन्त की श्रेणी में परस्पर गुणा करने पर निष्पन्न अन्योन्याभ्यस्त राशि में से आद्य और अतिम दो भंगों को छोड़कर जो राशि उत्पन्न हो वह अनानुपूर्वी है। विवेचन–इन तीन सूत्रों में प्रोपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वी का स्वरूप बतलाया है / औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी के प्रकरण में जैसे द्रव्यानुपूर्वी का अधिकार होने से धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों को पूर्वानुपूर्वी प्रादि रूप में उदाहृत किया है, वैसे ही यहाँ क्षेत्रानुपूर्वी का प्रकरण होने से अधोलोक आदि क्षेत्र पूर्वानुपूर्वी आदि के रूप में उदाहृत हुए हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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