________________ आनुपूर्वी निरूपण [107 अधोलोक प्रादि भेद का कारण-लोक के अधोलोक आदि तीन भेद होने का मुख्य आधार मध्यलोक के बीचोंबीच स्थित सुमेरुपर्वत है। इसके नीचे का भाग अधोलोक और ऊपर का भाग ऊर्ध्वलोक तथा दोनों के बीच में मध्यलोक है। मध्यलोक का तिर्छा विस्तार अधिक होने से इसे तिर्यक्लोक भी कहते हैं। अधोलोक आदि का प्रारम्भ कहाँ से ?-- जैन भुगोल के अनुसार लोक ऊपर से नीचे तक लम्बाई में चौदह राज है और विस्तार में अनियत है। यह धर्मास्तिकाय अादि षड्द्रव्यों से व्याप्त है। इस रत्नप्रभा पृथ्वी पर बहु सम भूभाग बाले मेरुपर्वत के मध्य में आकाश के दो-दो प्रदेशों के वर्ग (प्रतर) में आठ रुचक प्रदेश हैं। उनमें से एक अधस्तन प्रतर से लेकर नीचे के नौ सौ योजन गहराई को छोड़कर उससे नीचे अधोलोक है। इसी प्रकार उपरितन प्रतर से लेकर ऊपर के नौ सौ योजन छोड़कर ऊपर कुछ कम सात राजू लम्बा ऊर्ध्वलोक है। इन अधोलोक और ऊर्ध्वलोक के बीच में अठारह सौ योजन प्रमाण ऊँचाई वाला तिर्यग्लोक-मध्यलोक है / अधोलोक आदि नामकरण का हेतु सामान्य रूप से तो मेरुपर्वत से नीचे का भाग अधोलोक, ऊपर का भाग ऊर्ध्वलोक और बराबर समरेखा में तिर्छा फैला क्षेत्र तिर्यग्लोक-मध्यलोक के नामकरण का हेतु है। लेकिन विशेषापेक्षया कारण यह है.---'अधः' शब्द अशुभ अर्थ का वाचक है। अतएव क्षेत्रस्वभाव से अधिकतर अशुभ द्रव्यों का परिणमन अधोलोक संज्ञा का हेतु है Tऊर्ध्व' शब्द शुभ अर्थ का वाचक है। अतएव ऊर्ध्वलोक में क्षेत्र-प्रभाव से द्रव्यों का परिणमन प्राय: शुभ हुअा करता है। अतएव शुभ परिणाम वाले द्रव्यों के सम्बन्ध से ऊर्ध्वलोक यह नाम है। तिर्यक् शब्द का एक अर्थ मध्यम भी होता है। अत: इस मध्यलोक में क्षेत्र-प्रभाव से प्रायः मध्यम परिणाम वाले द्रव्य होते हैं। इसलिये इन मध्यम परिणाम रूप द्रव्यों के संयोग बाले लोक का नाम मध्यलोक या तिर्थक्लोक है / अथवा अधोलोक और ऊर्ध्वलोक के मध्य में स्थित होने से यह मध्यलोक कहलाता है। अधोलोक आदि का क्रमविन्यास---सूत्र में सर्वप्रथम अधोलोक के उपन्यास का कारण यह है कि वहाँ पर प्राय: जघन्य परिणाम वाले द्रव्यों का ही सम्बन्ध रहा करता है। इसीलिए जिस प्रकार चौदह गुणस्थानों में जघन्य होने से सर्वप्रथम मिथ्यात्वगुणस्थान का उपन्यास किया जाता है, उसी प्रकार यहाँ पर भी जघन्य होने से अधोलोक का सर्वप्रथम उपन्यास किया है तथा मध्यम परिणाम वाले द्रव्यों के संबन्ध के कारण तत्पश्चात् तिर्यक्लोक का और उत्कृष्ट परिणाम वाले द्रव्यों के संबन्ध के कारण अन्त में ऊर्ध्वलोक का उपन्यास किया है। ___ यह कथन पूर्वानुपूर्वी की अपेक्षा जानना चाहिये / पश्चानुपूर्वी में पूर्वानुपूर्वो का व्युत्क्रम (विपरीत क्रम) है / अनानुपूर्वी में इन तीन पदों के छह भंग होते हैं / अनानुपूर्वी में प्रादि और अंत भंग छोड़ने का कारण यह है कि आदि का भंग पूर्वानुपूर्वी का और अंतिम भंग पश्चानुपूर्वी का है। अब पूर्वोक्त प्रोपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वी का लोकत्रयापेक्षा पृथक्-पृथक् वर्णन करते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org