________________ 104] [अनुयोगद्वारसूत्र प्रदेशार्थता की अपेक्षा विशेषाधिक हैं। प्रानुपूर्वी द्रव्य द्रव्यार्थता की अपेक्षा असंख्यातगुण है और उसी प्रकार प्रदेशार्थता की अपेक्षा भी असंख्यातगुण हैं / / इस प्रकार से अनुगम की वक्तव्यता जानना चाहिये तथा इसके साथ ही नैगम-व्यवहारनयसंमत अनौपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वी का वर्णन पूर्ण हुआ। विवेचन-सूत्र में क्षेत्रानुपूर्वी के अनुगमगत अल्पबहुत्व का निर्देश किया है / यहाँ यह जानना चाहिये द्रव्यों की गणना को द्रव्यार्थता तथा प्रदेशों की गणना को प्रदेशार्थता एवं द्रव्यों तथा प्रदेशों दोनों की गणना को द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थना या उभयार्थता कहते हैं। आनुपूर्वी में विशिष्ट द्रव्यों के अवगाह से उपलक्षित हुए नभःप्रदेशों में यह तीन नभःप्रदेशों का समूदाय है. यह चार नभःप्रदेशों का समुदाय है, इत्यादि रूप नभःप्रदेशसमुदाय द्रव्य हैं और इन समुदायों के जो ग्रारंभक हैं वे प्रदेश हैं / अनानपूर्वी में एक-एक प्रदेश-अवगाढ द्रव्य से उपलक्षित सकल आकाशप्रदेश पृथक्-पृथक प्रत्येक द्रव्य हैं / एक-एक प्रदेश रूप द्रव्य में अन्य प्रदेशों का रहना असंभव होने से यहाँ प्रदेश संभव नहीं हैं। प्रवक्तव्यकों में लोक में जितने-जितने दो-दो प्रदेशों के योग हैं, उतने प्रत्येक द्रव्य हैं और इन द्विकयोगों को प्रारंभ करने वाले प्रदेश हैं। शेष अल्पबहुत्व का कथन सुगम है / इस वर्णन के साथ नैगम-व्यवहारनयसंमत अनोपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी का कथन समाप्त हुआ। अब क्रमप्राप्त संग्रहह्नयसंमत अनोपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वी का वर्णन प्रारंभ करते हैं / संग्रहनयसंमत अनौपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वीप्ररूपणा 159. से कि तं संगहस्स अणोवणिहिया खेत्ताणपुवी ? जहेव दवाणुपुवी तहेव खेत्ताणुपुल्वी यव्वा / से तं संगहस्स अगोवणिहिया खेत्ताणपुवी। से तं अणोवणिहिया खेत्ताणुपुम्बी। [159 प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसंमत अनोपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [159 उ.] आयुष्मन् ! पूर्वोक्त संग्रहनयसमत अनौपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी की तरह इस क्षेत्रानुपूर्वी का भी स्वरूप जानना चाहिये / इस प्रकार से संग्रहनयसंमत अनौपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वी की और साथ ही अनौपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वी की वक्तव्यता समाप्त हुई / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org