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________________ आनुषी निरूपण [103 में अवक्तव्यक द्रव्यों का अवगाहपरिणाम मादि है। इसलिये ये सब द्रव्य सादिपारिणामिक भाववर्ती हैं।' अनुगमगत अल्पबहुत्वप्ररूपणा 158. [1] एएसि गं भंते ! गम-बवहाराणं आणुपुत्वीदव्वाणं अणाणुपुत्वीदध्वाणं अवत्तन्वयदव्वाण य दवट्टयाए पएसट्टयाए दब्वट्ठपएसट्ठयाए य कयरे कयरहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सम्वत्थोवाइं गम-ववहाराणं अवत्तम्बयदव्वाइं दब्बट्ठयाए, अणाणुयुब्बोदवाई दम्वट्ठयाए विसेसाहियाई, आणुपुटवीदवाइं दब्बठ्ठयाए असंखेज्जगुणाई / [158-1 प्र.] भगवन् ! इन नैगम-व्यवहारनयसंमत प्रानुपूर्वी द्रव्यों, अनानुपूर्वी द्रव्यों और अवक्तव्य क द्रव्यों में कौन द्रव्य किन द्रव्यों से द्रव्यार्थता, प्रदेशार्थता और द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थता की अपेक्षा अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? [158-1 उ. गौतम ! नैगम-ज्यवहारनयसंमत अवक्तव्यक द्रव्य द्रव्यार्थता की अपेक्षा सब से अल्प हैं / द्रव्यार्थना की अपेक्षा अनानुयूर्वी द्रव्य अवक्तव्यक द्रव्यों से विशेषाधिक है और आनुपूर्वी द्रव्य द्रव्यार्थता की अपेक्षा अनानुपूर्वी द्रव्यों से असंख्यातगुण हैं / [2] पएसठ्ठयाए सम्वत्थोवाई गम-बवहाराणं अणाणुपुब्बीदवाइं अपएसठ्ठयाए, अवत्तम्वयदव्वाइं पएसठ्ठयाए विसेसाहिया, आणुपुब्बीदवाई पएसठ्ठयाए असंखेज्जगुणाई। 2] प्रदेशार्थता की अपेक्षा नैगम-व्यवहारतयसंमत अनानुपूर्वीद्रव्य अप्रदेशी होने के कारण सर्वस्तोक हैं। प्रदेशार्थता की अपेक्षा अवक्तव्यक द्रव्य अनानुपूर्वी द्रव्यों से विशेषाधिक हैं और प्रानुपुर्वी द्रव्य प्रदेशार्थता की अपेक्षा प्रवक्तव्यक द्रव्यों से असंख्यातगुण हैं। [3] दव्वट्ठ-पएसठ्ठयाए सव्वत्थोवाई गम-ववहाराणं अवत्तव्यदवाई दवट्ठयाए, अणाणुपुब्बीदव्वाई दव्वट्ठयाए अपएसट्ठयाए बिसेसाहियाई, अबत्तव्वयदव्वाई पएसट्टयाए विसेसाहियाई, आणुपुब्बोदव्वाई दवट्ठयाए असंखेज्जगुणाई, ताई चेव पएसठ्ठयाए असंखेन्जगुणाई। से तं अणुगमे / से तं गम-बवहाराणं अणोवणिहिया खेत्ताणुपुब्बी / [3] द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थता की अपेक्षा में नैगम-व्यवहारनयसंमत अवक्तव्य क द्रव्य द्रव्यार्थ से सबसे अल्प है, (क्योंकि पूर्व में द्रव्यार्थता से प्रवक्तव्यक द्रव्यों में सर्वस्तोकता बताई है।) द्रव्यार्थता और अप्रदेशार्थता की अपेक्षा अनानुपूर्वी द्रव्य प्रवक्तव्यक द्रव्यों से विशेषाधिक हैं। प्रवक्तव्यक द्रव्य ...- ---.-- . .. " -- - 1. किन्हीं किन्हीं प्रतियों में 'तिनिधि णियमा सादिपारिणामिए भावे होज्जा' के स्थान पर 'णियमा साइ पारिणामिए भावे होज्जा / एवं दोणिवि' पाठ है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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