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________________ | अनुयोगद्वारसूत्र [145 उ.] आयुष्मन् ! नैगम-व्यवहारनयसंमत भंगसमुत्कीर्तनता का स्वरूप इस प्रकार है-१ प्रानुपूर्वी है, 2 अनानुपूर्वी है, 3 प्रवक्तव्यक है इत्यादि द्रव्यानुपूर्वी के पाठ की तरह क्षेत्रानुपूर्वी के भी वही छब्बीस भंग हैं, यावत् इस प्रकार नैगमव्यवहारनय सम्मन भंगसमुत्कीर्तनता का स्वरूप जानना चाहिये / 146. एयाए णं णेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए कि पओयणं ? एयाए गं गम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणयाए णेगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया कज्जति / [146 प्र. भगवन् ! इस नैगम-व्यवहारनयमम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का क्या प्रयोजन है ? 146 उ. प्रायुष्मन ! इस नैगम-व्यवहारनयसम्मत भगसमुत्कीर्तनता द्वारा नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता की जाती है। विवेचन-सूत्र में नंगम-व्यवहारनयमम्मत क्षेत्रानुपूर्वी के छब्बीस भंग द्रव्यानुपूर्वी के भंगों के नामानुरूप होने का उल्लेख किया है। द्रव्यानुपूर्वी संबन्धी छब्बीस भंगों के नाम सूत्र 101, 103 में बताये गये हैं। नगम-व्यवहारनयसंमत भंगोपदर्शनता 147. से कि तं गंगम-ववहाराणं भंगोवदंसणया ? गम-ववहाराणं भंगोचदंसगया तिपएसोगाढे आणुपुन्वी एगपएसोगाढे अणाणुपुल्वी दुपएसोगाढे अवत्तव्वए, तिपएसोगाढाओ आणुपुवीओ एगपएसोगाढाओ अणाणुपुचीओ दुपएसोगाढाई अवत्तव्वयाई, अहवा तिपएसोगाढे य एगपएसोगाढे य आणुपुत्वी य अणाणुपुत्वी य, एवं तहा चेव दवाणुपुटवीगमेणं छब्बीसं भंगा भाणियव्वा जाव से तं गम-ववहाराणं भंगोवदंसणया। (147 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता का क्या स्वरूप है ? [147 उ.] आयुष्मन् ! तीन प्राकाशप्रदेशावगाढ व्यणुकादि स्कन्ध प्रानुपूर्वी पद का वाच्य हैं--प्रानुपूर्वी हैं। एक प्राकाशप्रदेशावगाही परमाणुसंघात अनानुपूर्वी तथा दो अाकाशप्रदेशावगाही चणुकादि स्कन्ध क्षेत्रापेक्षा अवक्तव्यक कहलाता है / तीन आकाशप्रदेशाबगाही अनेक स्कन्ध 'मानुपूवियो' इस बहुवचनान्त पद के वाच्य हैं, एक एक आकाशप्रदेशावगाही अनेक परमाणुसंघात 'अनानुपूवियां' पद के लथा द्वि आकाराप्रदेशावगाही द्वयणुक आदि अनेक द्रव्यस्कन्ध 'प्रवक्तव्यक' पद के वाच्य हैं। अथवा त्रिप्रदेशावगाढस्कन्ध और एक प्रदेशावगाढस्कन्ध एक प्रानुपूर्वी और एक अनानुपूर्वी है। इस प्रकार द्रव्यानुपूर्वी के पाठ की तरह छब्बीस भंग यहाँ भी जानने चाहिये यावत् यह नैगमव्यवहारनयसंमत भंगोपदर्शनता का स्वरूप है। विवेचन-सूत्र में भंगोपदर्शनता का स्वरूप स्पष्ट किया है / यहाँ बताये गये छब्बीस भंगों का वर्णन द्रव्यानुपूर्वी के अनुरूप है। लेकिन दोनों के वर्णन में यह भिन्नता है कि द्रव्यानुपूर्वी के प्रकरणगत प्रानुपूर्वी, अनानुपूर्वी और प्रवक्तव्यक पदों के वाच्यार्थ त्रिप्रदेशिक ग्रादि स्कन्ध, एकप्रदेशी पुद्गलपरमाणु और द्विप्रदेशीस्कन्ध हैं जबकि इस क्षेत्रानुपूर्वी के प्रकरणगत भंगोपदर्शनता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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