SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 90 [अनुयोगद्वारसूत्र [136 प्र.] भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [136 उ.] आयुष्मन् ! पूर्वानुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार है--परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशिक स्कन्ध, त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, यावत् दशप्रदेशिक स्कन्ध, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध रूप क्रमात्मक अानुपूर्वी को पूर्वानुगूर्वी कहते हैं। पश्चानुपूर्वो 137. से किं तं पच्छाणुपुदी ? पच्छाणुपुब्धी अणंतपएसिए प्रसंखिज्जपएसिए संखिज्जपएसिए जाव दसपएसिए जाव तिपएसिए दुपएसिए परमाणुपोग्गले / से तं पच्छाणुपुवी। [137 प्र.] भगवन् ! पश्चानुपूर्वी का स्वरूप क्या है ? [137 उ.] आयुष्मन् ! पश्चानुपूर्वी का स्वरूप यह है-अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध यावत् दशप्रदेशिक स्कन्ध यावत् त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, द्विप्रदेशिक स्कन्ध, परमाणपुद्गल / इस प्रकार का विपरीत क्रम से किया जाने वाला त्यास पश्चानुपूर्वी है। अनानुपूर्वी 138. से कि तं अणाणुपुवी ? अणाणुपुठवी एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए अणंतगच्छगयाए सहीए अत्रमन्नभासो दुरूवणो / से तं अणाणुपुग्यो / से तं ओवणिहिया दवाणुपुवी / से तं जाणगव्वइरित्ता दवाणुपथ्वी / से तं नोआगमओ दम्वाणुपुब्बी / से तं दव्वाणुपवी। [138 प्र.] भगवन् ! अनानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? [138 उ.] आयुष्मन् ! एक से प्रारंभ करके एक-एक की वृद्धि करने के द्वारा निमित अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध पर्यन्त की श्रेणी की संख्या को परस्पर गुणित करने से निष्पन्न अन्योन्याभ्यस्त राशि में से आदि और अंत रूप दो भंगों को कम करने पर अनानुपूर्वी बनती है। यह औपनिधि की द्रव्यानुपूर्वी का वर्णन जानना चाहिये / इस प्रकार से ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी का और साथ ही नोप्रागम द्रव्यानुपूर्वी तथा द्रव्यानुपूर्वी का भी वर्णन पूर्ण हुया / विवेचन-यहाँ पूर्वानुपूर्वी आदि रूप में पुद्गलास्तिकाय को उदाहृत करने का कारण यह है कि पूर्वानुपूर्वी नादि के विचार में परमाणु आदि द्रव्यों का परिपाटी रूप क्रम पुद्गल द्रव्यों की बहुलता के कारण संभव है। एक-एक द्रव्य रूप माने जाने से धर्म, अधर्म, आकाश इन तीनों अस्तिकाय द्रव्यों में पुद्गलास्तिकाय की तरह द्रव्यबाहुल्य नहीं है तथा जीवास्तिकाय में अनन्त जीवद्रव्यों की सत्ता होने के कारण यद्यपि द्रव्यबाहुल्य है, फिर भी परमाणु, द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी स्कन्ध यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध में जैसा पूर्वानुपूर्वी आदि रूप पूर्व-पश्चाद्भाव है, वैसा जीवद्रव्य में नहीं है। क्योंकि प्रत्येक जीव असंख्यात प्रदेश वाला होने से समस्त जीवों में तुल्यप्रदेशता है। परमाण, द्विप्रदेशिक स्कन्ध आदि द्रव्यों में विषम प्रदेशता है, जिससे वहाँ पूर्व-पश्चादभाव है। अद्धासमय एक समय प्रमाण रूप है / इसीलिये उसमें भी पूर्वानुपूर्वी आदि संभव नहीं है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy