________________ अनुबोमाारसूत्र [124 प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? [124 उ.] आयुष्मन् ! संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य संख्यात नहीं हैं, असंख्यात नहीं हैं और अनन्त भी नहीं हैं, परन्तु नियमत: एक राशि रूप हैं। इसी प्रकार दोनों--(अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक) द्रव्यों के लिये भी जानना चाहिये / विवेचन-द्रव्यप्रमाणप्ररूपणा में पानुपूर्वी प्रादि पदों द्वारा कहे गये द्रव्यों की संख्या का निर्धारण होता है। यही बात सूत्र में स्पष्ट की है। संग्रहनय सामान्य को विषय करने वाला होने से उसके मत से संख्यात आदि भेद संभव नहीं हैं / किन्तु एक-एक राशि ही हैं / इसी बात का संकेत करने के लिये सूत्र में पद दिया है--नियमा एगो रासी / जिसका अर्थ यह है कि जैसे विशिष्ट एक परिणाम से परिणत एक स्कन्ध में तदारंभक परमाणुओं की बहुलता होने पर भी एकता की ही मुख्य रूप से विवक्षा होती है। उसी प्रकार आनुपूर्वीद्रव्य अनेक होने पर भी उनमें आनुपूर्वीत्व सामान्य एक होने से उन्हें संग्रहनय एक मानता है। संग्रहनयसम्मत क्षेत्रप्ररूपणा 125. संगहस्स आणुपुग्वीचन्दाई लोगस्स कतिभागे होज्जा ? कि संखेज्जतिभागे होज्जा ? असंखेज्जतिभागे होज्जा? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? सव्वलोए होज्जा? नो संखेज्जतिभागे होज्जा नो असंखेज्जतिभागे होज्जा नो संखेज्जेसु भागेस होज्जा नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नियमा सम्वलोए होज्जा ? एवं दोणि वि। [125 प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य लोक के कितने भाग में हैं ? क्या संख्यात भाग में हैं ? असंख्यात भाग में हैं ? संख्यात भागों में हैं ? असंख्यात भागों में हैं ? अथवा सर्वलोक में हैं ? [125 उ.] आयुष्मन् ! समस्त प्रानुपूर्वीद्रव्य लोक के संख्यात भाग, असंख्यात भाग, संख्यात भागों या असंख्यात भागों में नहीं हैं किन्तु नियमतः सर्वलोक में हैं। इसी प्रकार का कथन दोनों (अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक) द्रव्यों के लिए भी समझना चाहिये / अर्थात् ये दोनों भी समस्त लोक में हैं ? विवेचन--संग्रहनय की अपेक्षा आनुपूर्वी आदि द्रव्यों का क्षेत्र सर्वलोक बताया है। उसका कारण यह है कि प्रानुवित्व आदि रूप सामान्य एक है और वह सर्वलोकव्यापी है। इसीलिये आनुपूर्वी आदि द्रव्यों की सत्ता सर्वलोक में है। संग्रहनयसंमत स्पर्शनाप्ररूपणा 126. संगहस्स आणुपुत्वीदव्वाइं लोगस्स कि संखेज्जतिभागं फुसंति ? असंखेज्जतिभागं फुसंति ? संखेज्जे भागे फुसंति ? असंखेज्जे भागे फुसंति ? सब्बलोगं फुसंति ? नो संखेज्जतिभागं फुसंति नो प्रसंलेज्जतिभागं फुसंति नो संखेज्जे भागे फुसंति नो असंखेज्जे भागे फुसंति, नियमा सबलोग फुसति / एवं दोनि वि / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org