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________________ आनपूवी निरूपण] [83 [121 उ.] आयुष्मन् ! संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य प्रानुपूर्वीद्रव्यों में समवतरित होते हैं, अनानुपूर्वी और प्रवक्तव्यक द्रव्यों में नहीं। इसी प्रकार दोनों भी-अनानुपूर्वीद्रव्य और अवक्तव्यकद्रव्य भी स्वस्थान में ही समवतरित होते हैं। यह समवतार का स्वरूप है। विवेचन-समवतार सम्बन्धी स्पष्टीकरण नैगमव्यवहारनयसम्मत समवतार के प्रसंग में किया जा चुका है। तदनुरूप यहाँ भी समझ लेना चाहिये कि सजातीय का सजातीय में ही समावेश होता है / समावेश होना ही समवतार की परिभाषा है। संग्रहनयसम्मत अनुगमप्ररूपणा 122. से कि तं अणुगमे ? भणुगमे अट्टविहे पन्नते। तं जहा---- संतपयपरूवणया 1 द वपमाणं 2 च खेत्त 3 फुसणा 4 य / कालो 5 य अंतरं 6 भाग 7 भाव 8 अप्पाबहुं नस्थि // 6 // [122 प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत अनुगम का क्या स्वरूप है ? [122 उ.] आयुष्मन् ! संग्रहनयसम्मत अनुगम आठ प्रकार का है / वह इस प्रकार (गाथार्थ) 1. सत्पदप्ररूपणा, 2. द्रव्यप्रमाण, 3. क्षेत्र, 4. स्पर्शना, 5. काल, 6. अन्तर, 7. भाग और 8. भाव / (किन्तु संग्रहनय सामान्यग्नाही होने से) इसमें अल्पबहुत्व नहीं होता है। विवेचन--सूत्र में अनुगम के आठ प्रकारों के नाम गिनाये हैं। इनकी व्याख्या इस प्रकार है-- सत्पदप्ररूपणा 123. संगहस्स आणुपुव्वोदव्वाइं कि अस्थि णस्थि ? नियमा अस्थि / एवं दोण्णि वि। [123 प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य हैं अथवा नहीं हैं ? [123 उ.] आयुष्मन् ! नियमत: (निश्चित रूप से) हैं। इसी प्रकार दोनों (अनानुपूर्वी और प्रवक्तव्यक) द्रव्यों के लिये भी समझना चाहिये। विवेचन--इस सत्पदप्ररूपणा द्वारा यह प्ररूपित किया है कि ये आनुपूर्वी आदि पद असदर्थविषयक नहीं हैं / किन्तु जैसे स्तम्भ आदि पद स्तम्भ आदि रूप अपने वास्तविक अर्थ को विषय करते हैं, उसी प्रकार आनुपूर्वी आदि पद भी वास्तविक रूप में विद्यमान पदार्थ के वाचक हैं। इसी तथ्य को बताने के लिये सूत्र में कहा है-'नियमा अस्थि / ' द्रव्यप्रमाणप्ररूपणा ...... 124. संगहस्स प्राणपुचीदवाइं कि संखेज्जाइं असंखेज्जाई अणंताई ? नो संखेज्जाई नो असंखेज्जाइं नो अणंताई, नियमा एगो रासी / एवं दोगिण वि। .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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