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________________ 2] अनुयोगद्वारा संग्रहमयसम्मत भंगोपदर्शनता 120. से कि तं संगहस्स भंगोवदंसणया ? भंगोवसणया तिपएसिया प्राणुपु वी 1 परमाणुपोग्गला प्रणाणुपुवी 2 दुपएसिया प्रवत्तव्वए 3 महवा तिपएसिया य परमाणुपोग्गला य आणुपुवी य प्रणाणुपुवी य 4 महवा तिपएसिया य बुपएसिया य प्राणुपुवी य अवत्तन्वए य 5 अहवा परमाणुपोग्गला य दुपएसिया य अणाणुपुथ्वी य अवत्तव्यए य 6, अहवा तिपएसिया य परमाणुयोग्गला य दुपएसिया य आणुपुवी य अणाणुपुथ्वी य अवत्तव्यए य 7 / से तं संगहस्स भंगोवदंसणया। [120 प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत भंगोपदर्शनता का क्या स्वरूप है ? [120 उ.] आयुष्मन् ! संग्रहनयसम्मत भंगोपदर्शनता का स्वरूप इस प्रकार है--त्रिप्रदेशिक स्कन्ध प्रानुपूर्वी शब्द के वाच्यार्थ रूप में, परमाणुपुद्गल अनानुपूर्वी शब्द के वाच्यार्थ रूप में और द्विप्रदेशिक स्कन्ध अवक्तव्यक शब्द के वाच्यार्थ रूप में विवक्षित होते हैं / अथवा-- त्रिप्रदेशिक स्कन्ध और परमाणपुद्गल आनुपूर्वी-अनानुपूर्वी शब्द के वाच्यार्थ रूप में, त्रिप्रदेशिक और द्विप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी-प्रवक्तव्यक शब्द के वाच्यार्थ रूप में तथा परमाणुपुद्गल और द्विप्रदेशिक स्कन्ध, अनानुपूर्वी-प्रवक्तव्यक शब्द के वाच्यार्थ रूप में विवक्षित होते हैं / अथवा त्रिप्रदेशिक स्कन्ध-परमाणुपुद्गल-द्विप्रदेशिक स्कन्ध प्रानुपूर्वी-अनानुपूर्वी-प्रवक्तव्यक शब्द के वाच्यार्थ रूप में विवक्षित होते हैं। इस प्रकार से संग्रहनयसम्मत भंगोपदर्शनता का स्वरूप जानना चाहिये। विवेचन--पूर्व सूत्र में भंगसमुत्कीर्तन के रूप में जिन संज्ञाओं का उल्लेख किया था, उन संज्ञाओं का वाच्यार्थ इस सूत्र में स्पष्ट किया है कि प्रानुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक शब्द के द्वारा यावन्मात्र त्रिप्रदेशिक आदि स्कन्ध, परमाणुपुद्गल और द्विप्रदेशिक स्कन्ध ग्रहण किये जाते हैं। अर्थात् यही इनके वाच्यार्थ हैं। इसी प्रकार द्विकसंयोगी और विकसंयोगी पदों का वाच्यार्थ समझ लेना चाहिये। समवतारमरूपणा 121. से कि तं समोयारे ? समोयारे संगहस्स आणुपुचीदवाई कहि समोयरंति ? कि आणुपुवीदव्वेहि समोयरंति ? अणाणुपुब्बीदन्वेहि समोयरंति ? अवत्तव्दयदन्वेहि समोयरंति ? __संगहस्स आणुपुत्वीदन्वाइं प्राणुपुत्वीदर्वेहि समोयरंति, नो अशाणुपुब्बोदव्वेहि समोयरंति, नो प्रवत्तब्वयदब्वेहि समोयरंति / एवं दोण्णि वि सट्ठाणे सट्ठाणे समोयरंति / से तं समोयारे / [121 प्र.] भगवन् ! समवतार का क्या स्वरूप है ? क्या संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य आनुपूर्वीद्रव्यों में समाविष्ट होते हैं ? अथवा अनानुपूर्वी द्रव्यों में समाविष्ट होते हैं ? या अवक्तव्यकद्रव्यों में समाविष्ट होते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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