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________________ 78] [अनुयोगद्वारसूत्र प्रवक्तव्यद्रव्यों में से द्रव्य, प्रदेश और द्रव्यप्रदेश की अपेक्षा कौन द्रव्य किन द्रव्यों की अपेक्षा अल्प, अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [114-1 उ.] गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा नैगम-व्यवहारनयमम्मत अवक्तव्यद्रव्य सबसे स्तोक (अल्प) हैं, अवक्तव्यद्रव्यों की अपेक्षा अनानुपूर्वीद्रव्य, द्रव्य की अपेक्षा विशेषाधिक हैं और द्रव्यापेक्षा मानुपूर्वीद्रव्य अनानुपूर्वी द्रव्यों से असंख्यातगुणे होते हैं। [2] पएसट्टयाए णेगम-ववहाराणं सव्वत्थोवाई प्रणाणुषुब्बोदव्वाइं अपएसट्टयाए, प्रवत्तव्वयदव्वाई पएसट्टयाए विसेसाहियाई, आणुपुत्वीदव्वाइं पएसट्टयाए अणंतगुणाई / [2] प्रदेश की अपेक्षा नैगम-व्यवहारनयसंमत अनानुपूर्वीद्रव्य अप्रदेशी होने से सर्वस्तोक हैं, प्रदेशों की अपेक्षा प्रवक्तव्यद्रव्य अनानुपूर्वी द्रव्यों से विशेषाधिक और प्रानुपूर्वीद्रव्य प्रवक्तव्य द्रव्यों से अनन्तगुणे हैं। [3] दव्वट्ठ-पएसट्टयाए सम्वत्थोवाइं गम-बवहाराणं अवत्तत्वगदवाई दवट्ठयाए, प्रणाणुपुत्वीदव्वाई दन्वट्ठयाए अपएसट्टयाए विसेसाह्यिाई, अवत्तव्वगदव्वाई पएसट्टयाए विसेसाहियाई, प्राणुपुबीदव्वाइं दवट्टयाए असंखेज्जगुणाई, ताई चेव पएसट्ठयाए अणंतगुणाई। से तं अणुगमे / से तं गम-ववहाराणं अणोवणिहिया दवाणुपुवी / [3] द्रव्य और प्रदेश से अल्पबहुत्व नैगम-व्यवहारनयसम्मत अवक्तव्यद्रव्य-द्रव्य की अपेक्षा सबसे अल्प हैं / द्रव्य और अप्रदेशार्थता की अपेक्षा अनानुपूर्वीद्रव्य विशेषाधिक हैं, प्रदेश की अपेक्षा प्रवक्तव्यद्रव्य विशेषाधिक है, अानुपूर्वीद्रव्य द्रव्य की अपेक्षा असंख्यातगुण और वही प्रदेश की अपेक्षा अनन्तगुण हैं। इस प्रकार से अनुगम का वर्णन पूर्ण हया एवं साथ ही नगम-व्यवहारनयसंमत अनौपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी की वक्तव्यता भी पूर्ण हुई / विवेचन--सूत्रकार ने नैगम-व्यवहारनयसम्मत प्रानुपूर्वी आदि द्रव्यों का द्रव्य, प्रदेश और उभय की अपेक्षा अल्पबहुत्व बतलाया है / स्पष्टीकरण इस प्रकार है द्रव्यार्थ से प्रवक्तव्यद्रव्य सर्वस्तोक, उनसे अनानुपूर्वीद्रव्य विशेषाधिक और उनसे आनुपूर्वीद्रव्य असंख्यातगुण होने में वस्तुस्वभाव कारण है। दूसरी बात यह है कि अनानुपूर्वी द्रव्य-परमाणु में एक ही और अवक्तव्यद्रव्य में द्विप्रदेशीस्कन्ध रूप एक स्थान ही लभ्य है, परन्तु प्रानुपूर्वीद्रव्य में व्यणुकस्कन्ध से लगाकर एकोत्तर वृद्धि से-एक-एक प्रदेश की उत्तरोत्तर वृद्धि होने से अनन्ताणुक स्कन्ध पर्यन्त अनन्त स्थान हैं। इसीलिये आनुपूर्वीद्रव्य, अनानुपूर्वी और प्रवक्तव्य द्रव्यों की अपेक्षा असंख्यातगुणे बताये हैं। - प्रदेशों की अपेक्षा अनानुपूर्वीद्रव्य को सबसे कम बताने का कारण यह है कि यदि परमाणु रूप इन अनानुपूर्वी द्रव्यों में भी द्वितीय आदि प्रदेश मान लिये जायें तो प्रदेशार्थता से भी अनानुपूर्वीद्रव्यों की प्रवक्तव्यद्रव्यों से अधिकता मानी जा सकती है, परन्तु परमाणु अप्रदेशी है और यहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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