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________________ आनुपूर्वी निरूपण] [77 भावप्ररूपणा 113. [1] गम-ववहाराणं प्राणुपुत्वीदन्वाइं कयरम्मि भावे होज्जा ? कि उदइए भावे होज्जा ? उवसमिए भावे होज्जा ? खाइए भावे होज्जा? खानोवसमिए भावे होज्जा ? पारिणामिए भावे होज्जा ? सनिवाइए भावे होज्जा? णियमा साइपारिणामिए भावे होज्जा। [113-1 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य किस भाव में वर्तते हैं ? क्या प्रौदयिक भाव में, औपशमिक भाव में, क्षायिक भाव में, क्षयोपशामिक भाव में, पारिणामिक भाव में अथवा सान्निपातिक भाव में वर्तते हैं ? [113 उ.] आयुष्मन् ! समस्त आनुपूर्वीद्रव्य सादि पारिणामिक भाव में होते हैं / [2] अणाणुपवीदव्वाणि अवत्तव्यदवाणि य एवं चेव भाणियवाणि। [2] अनानुपूर्वीद्रव्यों और अवक्तव्यद्रव्यों के लिये भी इसी प्रकार जानना चाहिये / अर्थात् वे भी सादिपारिणामिक भाव में हैं / विवेचन–आनुपूर्वी आदि द्रव्यों में सादिपारिणामिक भाव होता है, जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है द्रव्य का विभिन्न रूपों में होने वाले परिणमन–परिवर्तन को परिणाम कहते हैं और यह परिणाम ही पारिणामिक है / अथवा परिणमन या उससे जो निष्पन्न हो उसे पारिणामिक कहते हैं। यह पारिणामिकभाव सादि और अनादि के भेद से दो प्रकार का है। अनादि परिणमन तो लोकनियामक रूपी और अरूपी द्रव्यों में से धर्मास्तिकाय आदि अरूपी द्रव्यों का होता है और वह उनका स्वभावतः उस रूप में अनादि काल से होता चला पा रहा है और अनन्तकाल तक होता रहेगा। लेकिन रूपी पुदगलद्रव्य में जो परिणमन होता है, वह सादि-परिणाम है। मेघपटल, इन्द्रधनुष प्रादि पौद्गलिक द्रव्यों के परिणमन में अनादिता का अभाव है। क्योंकि पुद्गलों का जो विशिष्ट रूप में परिणमन होता है वह उत्कृष्ट रूप से भी असंख्यात काल तक ही स्थायी रहता है। इसलिये समस्त प्रानुपूर्वीद्रव्य सादिपारिणामिक भाव वाले हैं। इसी प्रकार अनानुपूर्वी और प्रवक्तव्य द्रव्यों में भी सादिपारिणामिक भाव जानना चाहिए। अल्पबहुत्वप्ररूपणा 114. [1] एएसि गं भंते। गम-बवहाराणं प्राणुपुत्वीदव्वाणं अणाणुपुथ्वीदव्याणं प्रवत्तवयदव्वाण य दवट्ठयाए पएसट्टयाए दबढ़-पएसट्टयाए कयरे कयरोहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोतमा ! सम्वत्थोवाइं गम-बवहाराणं अवत्तन्वयदवाई दवट्ठयाए, प्रणाणुपुत्वीदव्वाइं दस्वट्ठयाए विसेसाहियाई, प्राणुपुव्वीदव्वाइं दव्वट्टयाए प्रसंखेज्जगुणाई।। [114-1 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसंमत प्रानुपूर्वीद्रव्यों, अनानुपूर्वीद्रव्यों और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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