________________ 76 [अनुयोगद्वारसूत्र [2] गम-ववहाराणं प्रणाणुपुत्वीदव्वाई सेसदव्वाणं कहभागे होज्जा ? कि संखेन्जइभागे होज्जा ? असंखेज्जइभागे होज्जा ? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? नो संखेज्जइभागे होज्जा असंखेज्जइभागे होज्जा नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा। [112-2 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसंमत अनानुपूर्वीद्रव्य शेष द्रव्यों के कितनेवें भाग होते हैं ? क्या संख्यात भाग होते हैं ? असंख्यात भाग होते हैं ? संख्यात भागों रूप होते हैं ? अथवा असंख्यात भागों रूप होते हैं ? [112-2 उ.] आयुष्मन् ! अनानुपूर्वीद्रव्य शेष द्रव्यों के संख्यात भाग नहीं होते हैं, संख्यात भागों अथवा असंख्यात भागों रूप नहीं होते हैं / किन्तु असंख्यात भाग होते हैं। [3] एवं अवत्तब्बगदवाणि वि। [3] अवक्तव्य द्रव्यों संबन्धी कथन भी उपर्युक्तानुरूप असंख्यात भाग समझना चाहिये / विवेचन—सूत्र में यह स्पष्ट किया है कि आनुपूर्वीद्रव्य (त्र्यणुकादि स्कन्ध) अनानुपूर्वीद्रव्य (परमाणु) और प्रवक्तव्यद्रव्य (द्वयणुकस्कन्ध) कितन्त्रवें भाग होते हैं ? इसका अभिप्राय यह है कि आनुपूर्वीद्रव्य, अनानुपूर्वी और प्रवक्तव्य द्रव्यों से अधिक हैं या कम ? इसके उत्तर के लिये सूत्र में पद दिया-नियमा असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा / अर्थात् ये शेष द्रव्यों के असंख्यात भागों रूप अधिक हैं। शेष द्रव्यों की अपेक्षा समस्त प्रानुपूर्वीद्रव्य अधिक इसलिये हैं कि अनानुपूर्वी द्रव्य परमाणु रूप है और अबक्तव्यद्रव्य द्वयण क रूप है तथा आनुपूर्वीद्रव्य त्र्यणुक आदि स्कन्ध से लेकर अनन्ताणुकस्कन्ध पर्यन्त हैं। इसीलिये ये आनुपूर्वीद्रव्य शेष द्रव्यों की अपेक्षा असंख्यात भागों से अधिक हैं / यही कथन निम्नलिखित आगमिक उद्धरण से स्पष्ट है 'एएसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं संखिज्जपएसियाणं असंखेज्जपएसियाणं अणतपएसियाण य खंधाणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा अणंतपएसिया खंधा, परमाणुपोग्गला अणतगुणा संखिज्जपएसिया खंधा संखिज्जगुणा असंखेज्जपएसिया खंधा असंखेज्जगुणा / ' [अनुयोग. वृत्ति प. 66] इस सूत्र में समस्त पुद्गल जाति की अपेक्षा से उसके असंख्यातप्रदेशीस्कन्ध असंख्यातगुणे कहे हैं और ये असंख्यातप्रदेशीस्कन्ध पानुपूर्वी में ही अन्तर्भूत होते हैं / अतएव जब सब प्रानुपूर्वीद्रव्य शेष समस्त द्रव्यों से भी असंख्यातगुणे हैं तो फिर अनानुपूर्वी और प्रवक्तव्य द्रव्यों की अपेक्षा असंख्यातगुणे तो स्वयमेव सिद्ध हैं। __ अनानुपूर्वीद्रव्य (परमाणु) प्रानुपूर्वी और प्रवक्तव्य द्रव्यों की अपेक्षा असंख्यातवें भाग हैं तथा प्रवक्तव्यद्रव्य आनुपूर्वी और अनानुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा असंख्यातवें भाग जानना चाहिये, जिसके लिये सूत्र में संकेत किया है-असंखेज्जइभागे होज्जा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org