________________ आनुपूर्वो निरूपण [79 प्रदेशार्थता की अपेक्षा अल्पवहुत्व का कथन किया है / अतः अनानुपूर्वीद्रव्य सर्वस्तोक हैं, यही सिद्धान्त युक्तियुक्त है। यद्यपि अनानुपूर्वी द्रव्यों के अग्रदेशी होने से प्रदेशार्थता नहीं है, तथापि 'प्रकृष्टः देशः प्रदेशः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार सर्व सूक्ष्म देश अर्थात् पुद्गलास्तिकाय के निरंश भाग को प्रदेश कहते हैं और ऐसा प्रदेशत्व परमाणु द्रव्य में है। इसीलिये प्रदेशार्थता की अपेक्षा यहाँ अनानुपूर्वीद्रव्यों का विचार किया है। प्रवक्तव्यद्रव्यों को अनानुपूर्वीद्रव्यों से प्रदेशार्थता की अपेक्षा विशेषाधिक कहने का कारण यह है कि अनानुपूर्वीद्रव्य एकप्रदेशी (अप्रदेशी) है जबकि प्रवक्तव्यद्रव्य द्विप्रदेशी है। इसीलिये अवक्तव्यद्रव्यों को प्रदेशापेक्षा अनानुपूर्वीद्रव्यों से विशेषाधिक कहा है। आनुपूर्वीद्रव्य अवक्तव्यद्रव्यों की अपेक्षा प्रदेशार्थता से अनन्तगुणे इसलिये हैं कि इनके प्रदेश प्रवक्तव्य द्रव्यों के प्रदेशों से अनन्तगुणे तक हैं। द्रव्य और प्रदेशरूप उभयार्थता की अपेक्षा प्रवक्तव्यद्रव्यों को सर्वस्तोक बताने का कारण यह है कि पूर्व में अवक्तव्यद्रव्यों में द्रव्यार्थता की अपेक्षा सर्वस्तोकता कही है और अनानुपूर्वीद्रव्यों को प्रवक्तव्यद्रव्यों से उभयार्थ की अपेक्षा जो कुछ अधिकता कही है वह द्रव्यार्थता से जानना चाहिये किन्तु अनानुपूर्वीद्रव्यों से अवक्तव्यद्रव्य प्रदेशार्थता की अपेक्षा विशेषाधिक हैं और यह अधिकता उनके द्विप्रदेशी होने के कारण जानना चाहिये। आनुपूर्वीद्रव्यों के विषय में द्रव्य और प्रदेशार्थता की अपेक्षा जो पृथक-पृथक निर्देश किया है, वही उभयरूपता के लिये भी समझ लेना चाहिये कि द्रव्यार्थता की अपेक्षा असंख्यात गुणे और प्रदेशार्थता की अपेक्षा अनन्तगुण हैं / इस प्रकार ये नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी विषयक विवेचनीय का कथन करने के बाद अब संग्रहह्नयसम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी का विवेचन प्रारम्भ करते हैं। .. संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी प्ररूपरणा 115, से कि तं संगहस्स अणोवणिहिया दवाणपच्ची ? संगहस्स प्रणोवाणिहिया दवाणुपुव्वी पंचविहा पग्णत्ता। तं जहा--अपयपरूवणया 1 भंगसमुक्कित्तणया 2 भंगोवदंसणया 3 समोयारे 4 अणुगमे 5 / [115 प्र.] भगवन् ! संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? __ [115 उ.] आयुष्मन् ! संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी पांच प्रकार की कही है। वे प्रकार हैं-१. अर्थपदप्ररूपणता, 2. भंगसमुत्कीर्तनता, 3. भंगोपदर्शनता, 4. समवतार, 5. अनुगम / विवेचन--संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी की प्ररूपणा भी पूर्वोक्त नैगमव्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी की तरह पांच प्रकारों द्वारा करने का कथन सूत्र में किया है। इन अर्थपदप्ररूपणता आदि के लक्षण पूर्वोक्त अनुसार ही जानना चाहिये / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org