________________ आनुपूर्वी निरूपण] की स्पर्शना आकाश के सात प्रदेशों की इस प्रकार है--चारों दिशाओं के चार प्रदेश, ऊपर-नीचे के दो प्रदेश एवं एक वह प्रदेश जहाँ स्वयं उसकी अवगाहना है / इस प्रकार अनानुपूर्वी द्रव्य की कुल मिलाकर सात प्रदेशों की स्पर्शना होती है। यद्यपि परमाणु निरंश है, एक है, तथापि सात प्रदेशों के साथ उसकी स्पर्शना होती है / कालप्ररूपणा 110. [1] गम-ववहाराणं आणुपुत्वीदव्वाइं कालओ केवचिरं होंति ? एगं दन्वं पडुच्च जहणणं एग समयं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं, नाणादब्वाइं पडुच्च णियमा सम्वद्धा। [110-1 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसंमत प्रानुपूर्वीद्रव्य काल की अपेक्षा कितने काल तक (मानुपूर्वीद्रव्य रूप में) रहते हैं ? / [110-1 उ.] आयुष्मन् ! एक प्रानुपूर्वीद्रव्य जघन्य एक समय एवं उत्कृष्ट असंख्यात काल तक उसी स्वरूप में रहता है और विविध पानपूर्वीद्रव्यों की अपेक्षा नियमत: स्थिति सार्वकालिक है। [2] एवं दोन्नि वि। [2] इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति भ. जानना चाहिये / विवेचन-पूत्र में प्रानुपूर्वी ग्रादि द्रव्यों का एक और अनेक की अपेक्षा से उन्हीं प्रानुपूर्वी आदि द्रव्यों के रूप में रहने के काल का कथन किया गया है। पानपर्वीद्रव्य का पानपर्वीद्रव्य के रूप में रहने का जघन्य एक समयरूप और उत्कृष्ट असंख्यात काल इस प्रकार घटित होता है कि परमाणुद्वय आदि में दूसरे एक आदि परमाणुओं के मिलने पर एक अपूर्व प्रानुपूर्वीद्रव्य उत्पन्न हो जाता है और एक समय के बाद ही उसमें से एक आदि परमाणु के छूट जाने पर वह प्रानुपूर्वीद्रव्य उस रूप से विनष्ट हो जाता है। इस अपेक्षा प्रानुपूर्वीद्रव्य का पानुपूर्वी के रूप में रहने का काल जघन्य एक समय होता है और जब वही एक प्रानुपूर्वीद्रव्य असंख्यात काल तक उसी पानपूर्वीद्रव्य के रूप में रहकर एक प्रादि परमाणु से वियुक्त होता है तब उसकी अवस्थिति का उत्कृष्ट असंख्यात काल जानना चाहिये / अनेक प्रानपूर्वीद्रव्यों की अपेक्षा तो इन प्रानुपूर्वीद्रव्यों की स्थिति नियमतः सार्वकालिक है। क्योंकि ऐसा कोई काल नहीं कि जिसमें ये प्रानुपूर्वी द्रव्य न हों। किसी भी एक प्रानुपूर्वीद्रव्य का प्रानुपूर्वी रूप में रहने का काल अनन्त नहीं है। क्योंकि पुद्गलसंयोग को उत्कृष्ट स्थिति असंख्यात काल की ही होती है, इससे अधिक नहीं / / अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों का भी एक और अनेक की अपेक्षा उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति काल अानुपूर्वीद्रव्यवत् जानना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org