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________________ 72] [अनुयोगद्वारसूत्र में समस्त लोक में अवगाढ रहने को केवलीसमुद्घात के चतुर्थ समयवर्ती प्रात्मप्रदेशों के सर्वलोक में व्याप्त होने की तरह जानना चाहिये / स्पर्शना प्ररूपमा 109.[1] णेगम-ववहाराणं आणुपृथ्वीदव्वाई लोगस्स कि संखेज्जइभामं फुसंति ? असंखेज्जइभागं फुसंति ? संखेज्जे भागे फुसंति ? असंखेज्जे भागे फुसंति ? सटवलोयं फुसंति ? एगदव्यं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागं वा फुसंति, असंखेज्जइभागं वा फुसंति संखेज्जे वा भागे फुसंति असंखेज्जे वा भागे फुसंति सव्वलोगं वा फुसंति, णाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोगं फुसंति / [109-1 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसंमत यानुपूर्वीद्रव्य क्या लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? अथवा असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? संख्यात भागों का स्पर्श करते हैं ? अथवा असंख्यात भागों का स्पर्श करते हैं ? अथवा समस्त लोक का स्पर्श करते हैं ? [109-1 उ.] आयुष्मन् ! नैगम-व्यवहारनय की अपेक्षा एक ग्रानपूर्वीद्रव्य लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श करता है, असंख्यातवें भाग का स्पर्श करता है, संख्यात भागों का स्पर्श करता है, असंख्यात भागों का स्पर्श करता है अथवा सर्वलोक का स्पर्श करता है, किन्तु अनेक (आनुपूर्वी) द्रव्य तो नियमतः सर्वलोक का स्पर्श करते हैं / (2) णेगम-ववहाराणं अशाणुपुत्वीदव्याणं पुच्छा, एग दवं पडुच्च नो संखेज्जइभाग फुसंति असंखेज्जइभरगं फुसंति नो संखेज्जे भागे फुसंति नो असंखेज्जेभागे फुसंति नो सव्वलोगं फुसंति, नाणादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोग फुसंति / [109-2 प्र] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनय की अपेक्षा अनानुपूर्वी द्रव्य क्या लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? इत्यादि प्रश्न है / [109.2 प्र.] आयुष्मन् ! एक एक अनानुपूर्वी की अपेक्षा लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श नहीं करते हैं किन्तु असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं, संन्यात भागों का, असंख्यात भागों का या सर्वलोक का स्पर्श नहीं करते हैं। किन्तु अनेक अनानुपूर्वी द्रव्यों की अपेक्षा तो नियमतः सर्वलोक का स्पर्श करते हैं। (3) एवं अवत्तव्वगदम्वाणि वि भाणियवाणि। [109-3] प्रवक्तव्य द्रव्यों की स्पर्शना भी इसी प्रकार समझना चाहिये / विवेचन--सूत्र में पानपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों की एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा स्पर्णना का विचार किया है। सूत्रार्थ सुगम है और प्रश्नोत्तर का प्रकार क्षेत्रप्ररूपणा के समान ही जानना चाहिए। लेकिन क्षेत्र और स्पर्शना में यह अंतर है कि परमाणुद्रव्य की जो अवगाहना एक आकाश प्रदेश में होती है, वह क्षेत्र है तथा परमाणु के द्वारा अपने निवासस्थानरूप एक अाकाशप्रदेश के अतिरिक्त चारों ओर तथा ऊपर-नीचे के प्रदेशों के स्पर्श को स्पर्शना कहते हैं / परमाणु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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