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________________ 74] [अनुयोगद्वारसूत्र यहाँ प्रयुक्त 'एवं दोन्नि वि' सूत्र के स्थान पर किसी-किसी प्रति में 'अणाणपूवी दवाई अवक्तव्वगदव्वाइं च एवं चेव भाणिअव्वाई' पाठ है और तदनुरूप उसकी व्याख्या की है। लेकिन शब्दभेद होने पर भी दोनों के प्राशय में अंतर नहीं है, मात्र संक्षेप और विस्तार की अपेक्षा है। अन्तरप्ररूपणा 111. [1] णेगम-बवहाराणं आणुपुवीदव्वाणमंतरं कालतो केवचिरं होति ? एगं दव्वं पडुच्च जहण्णणं एगं समयं उक्कोसेणं अणंतं कालं, नाणादव्वाइं पडुच्च पत्थि अंतरं। [111-1 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत पानपूर्वीद्रव्यों का कालापेक्षया अंतरव्यवधान कितना होता है ? [111-1 उ,] आयुष्मन् ! एक प्रानुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल का अंतर होता है, किन्तु अनेक द्रव्यों की अपेक्षा अंतर-विरहकाल नहीं है। [2] णेगम-वहाराणं अणाणुपुवीदव्वाणं अंतरं कालतो केवचिरं होइ ? एगं दव्वं पडुच्च जहण्णेणं एगं संमयं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं, नाणादवाइं पडुच्च पत्थि अंतरं। [111-2 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसंमत अनानुपूर्वीद्रव्यों का काल की अपेक्षा अंतर कितना होता है ? [111-2 उ.] आयुष्मन् ! एक अनानुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा अन्तरकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल प्रमाण है तथा अनेक अनानुपूर्वीद्रव्यों की अपेक्षा अंतर नहीं है। [3] णेगम-ववहाराणं अवत्तव्वगदम्वाणं अंतरं कालतो केवचिरं होति? एगं दवं पडुच्च जहण्णणं एग समयं उक्कोसेणं अणंतं कालं, नाणादवाई पडुच्च त्थि अंतरं / [111-3 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसंमत अवक्तव्यद्रव्यों का कालापेक्षया अन्तर कितना है ? [111-3 उ.] अायुष्मन् ! एक प्रवक्तव्यद्रव्य की अपेक्षा अंतर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल है, किन्तु अनेक द्रव्यों की अपेक्षा अन्तर नहीं है / विवेचन-सूत्र के तीन विभागों में क्रमशः आनुपूर्वीद्रव्यों, अनानुपूर्वीद्रव्यों और प्रवक्तव्यद्रव्यों का एक और अनेक की अपेक्षा से कालापेक्षया अंतर बताया है कि पानपूर्वी प्रादि द्रव्य आनुपूर्वी आदि स्वरूप का परित्याग करके पुन: उसी प्रानुपूर्वी स्वरूप को कितने काल के व्यवधान से प्राप्त करते हैं / वह इस प्रकार है। एक आनुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा जघन्य अंतर एक समय का, उत्कृष्ट अंतर अनन्त काल का है। नाना द्रव्यों की अपेक्षा अंतर नहीं होने का भाव इस प्रकार जानना चाहिये कि त्र्यणुक, चतुरणक आदि आनुपूर्वीद्रव्यों में से कोई एक आनुपूर्वीद्रव्य स्वाभाविक अथवा प्रायोगिक परिणमन से खंड-खंड होकर आनुपूर्वी पर्याय से रहित हो जाए और पुन: वही द्रव्य एक समय के बाद स्वाभाविक आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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