________________ आनुपूर्वी निरूपण सत्पद प्ररूपणा 106. (1) नेगम-ववहाराणं आणुपुब्बीदव्वाइं कि अस्थि मस्थि ? णियमा अस्थि / [106-1 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनय की अपेक्षा आनुपूर्वी द्रव्य हैं अथवा नहीं हैं ? [106-1 उ.] अायुष्मन् ! नियम से--अवश्य हैं / (2) नेगम-ववहाराणं अणाणुपुधीदव्वाइं कि अस्थि णत्थि ? णियमा अस्थि / [106-2 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनपसंमत अनानुपूर्वी द्रव्य हैं अथवा नहीं हैं ? | 106-2 उ.] अायुष्मन् ! अवश्य हैं। (3) नेगम-ववहाराणं अवत्तव्वगदम्वाइं कि अस्थि पत्थि ? नियमा अत्थि। [106-3 प्र.] भगवन् ! क्या नैगम-व्यवहारनयसमत ग्रवक्तव्यक द्रव्य हैं या नहीं हैं ? [106-3 उ.] अायुष्मन् ! अवश्य हैं / (इस प्रकार से सत्पदप्ररूपणा रूप प्रथम भेद की बक्तव्यता जानना चाहिये / ) विवेचन - सूत्र में नेगम-व्यबहारनयसंमत प्रानुपूर्वी आदि द्रव्यों का निश्चितरूपेण अस्तित्व प्रकट किया है। वे असत् रूप नहीं हैं और न उनका कभी अभाव हो सकता है। यही सत्पदप्ररूपणा का हार्द है। द्रव्यप्रमारण 107. (1) नेगम-ववहाराणं आणुपुथ्वीदवाई कि संखेज्जाइं असंखेज्जाई अणंताई ? नो संखज्जाई नो असंखेज्जाई अणंताई। [107-1 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनय की अपेक्षा आनुपूर्वी द्रव्य क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं, अथवा अनन्त हैं ? [107-1 उ.] आयुष्मन् ! वे संख्यात नहीं, असंख्यात भी नहीं किन्तु अनन्त हैं। [2] एवं दोण्णि वि। [107-2] इसी प्रकार शेष दोनों (अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य) भी अनन्त हैं / इस प्रकार से अनुगम के द्रव्यप्रमाण नामक दूसरे भेद की वक्तव्यता जानना चाहिये / विवेचन—सूत्र में अनुगम के दूसरे भेद का हार्द स्पष्ट किया है कि प्रानुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य अनन्त हैं और इनके अनन्त होने का कारण यह है कि ये प्रत्येक आकाश के एक-एक प्रदेश में अनन्त-अनन्त भी पाये जाते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org