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________________ 66] [अनुयोगद्वारसूत्र 1. परमाणुपुद्गल और द्विप्रदेशिक स्कन्ध अनानुपूर्वी प्रवक्तव्यक रूप है, 2. परमाणुपुद्गल और अनेक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अनानुपूर्वी प्रवक्तव्यकों रूप है, 3. अनेक परमाणुपुद्गल और द्विप्रदेशिक स्कन्ध अनानुपूवियों और प्रवक्तव्य रूप है, 4. अनेक परमाणुपुद्गल और अनेक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अनानुपूवियों और प्रवक्तव्यको रूप हैं / अथवा 1. विप्रदेशिक स्कन्ध, परमाणुपुद्गल और द्विप्रदेशिक स्कन्ध प्रानुपूर्वी-अनानुपूर्वी प्रवक्तव्यक रूप है, 2. त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, परमाणुपुद्गल और अनेक द्विप्रदेशिक स्कन्ध प्रानुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्यकों रूप है, 3. त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, अनेक परमाणुपुद्गल और द्विप्रदेशिक स्कन्ध प्रानुपूर्वी, अनानपूवियों और प्रवक्तव्यक रूप है, 4. त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, अनेक परमाणुपुद्गल और अनेक द्विप्रदेशिक स्कन्ध प्रानुपूर्वी, अनानुवियों और प्रवक्तव्यकों रूप है, 5. अनेक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, परमाणपुदगल और द्विप्रदेशिकस्कन्ध प्रानुवियों, अनानुपूर्वी और प्रवक्तव्यक रूप है, 6. अनेक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, परमाणपुद्गल और अनेक द्विप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वियों, अनानुपूर्वी और प्रवक्तव्यको रूप है, 7. अनेक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अनेक परमाणुपुद्गल और द्विप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वियों, अनानुपूर्वियों और अवक्तव्यक रूप है, 8. अनेक त्रिप्रदेशिकस्कन्ध, अनेक परमाणुपुद्गल और अनेक द्विप्रदेशिकस्कन्ध्र अनुपूर्वियों-.-अनानुपूर्वियों-प्रवक्तव्यको रूप हैं। इस प्रकार से नैगम-व्यवहारनयसंमन भंगोपदर्शनता का स्वरूप जानना चाहिये। विवेचन...-पूर्व में भंगसमूत्कीर्तन के द्वारा जो संक्षेप रूप में संकेत किया था, उसी का यहाँ विस्तार से वाच्यार्थ स्पष्ट किया है कि किस भग के द्वारा किसके लिये संकेत किया है। जैसे कि त्रिप्रदेशी स्कन्ध प्रानुपूर्वी शब्द का, परमाणुपुद्गल अनानुपूर्वी का और द्विप्रदेशीस्कन्ध अववतव्य शब्द का त्राच्य है। अतएव एकवचन व बहुवचन के रूप में जिस प्रकार से प्रानुपूर्वी आदि शब्द का प्रयोग किया गया हो, उसका उसी रूप में वाच्यार्थ निर्धारित कर लेना चाहिए। ___ अर्थपदप्ररूपणा और भंगोपदर्शनता में यह अन्तर है कि अर्थपदप्ररूपणा में तो केवल अर्थपद रूप पदार्थ का कथन और भंगोपदर्शनता में भिन्न-भिन्न रूप से कथित भंगों का अर्थ स्पष्ट किया जाता है / इसलिये यहाँ पुनरुक्ति की कल्पना नहीं करनी चाहिये। समवतार-प्ररूपणा 104. (1) से कि तं समोयारे ? समोयारे णेगम-ववहाराणं आणपुव्वीदव्वाइं कहि समोयरंति ? कि आणुपुब्वोदहि समोयरंति ? अणाणुपुटवीदहि समोयरंति ? अवत्तव्वयदोह समोयरंति? नेगम-ववहाराणं आणुपुव्वोदवाई आणुपुष्यीदवहिं समोयरंति, णो अणाणुपुग्वीदहि समोयरंति नो अवत्तव्ययहि समोयरंति / [104-1 प्र.] भगवन् ! समवतार का क्या स्वरूप है ? नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वीदव्य' कहाँ समवतरित (समाविष्ट) होते हैं ? क्या आनुपूर्वीद्रव्यों में समवतरित होते हैं, अनानुपूर्वीद्रव्यों में अथवा प्रवक्तव्यकद्र व्यों में समवतरित होते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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