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________________ आनुपूर्वो निरूपण स्कन्ध आनुपूर्वी है। किन्तु परमाणु पुद्गल अनानुपूर्वो रूप है। द्विप्रदेशिक स्कन्ध अवक्तव्य है। अनेक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध यावत् अनेक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध प्रानुपूवियाँ-अनेक प्रानुपूर्वी रूप हैं ! अनेक पृथक-पृथक पुद्गल परमाणु अनेक अनानुपूर्वी रूप हैं / अनेक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अनेक प्रवक्तव्य हैं। इस प्रकार नैगम-व्यवहारनयसंमत अर्थपदप्ररूपणा का स्वरूप जानना चाहिये / विवेचन--सूत्र में नेगम-व्यवहारनयसंमत अर्थपदप्ररूपणा की व्याख्या की गई है। यहाँ यह समझना चाहिये कि आनुपूर्वी परिपाटी को कहते हैं और परिपाटी रूप पानुपूर्वी वहीं होती है जहाँ आदि, मध्य और अन्त रूप गणना का व्यवस्थित क्रम होता है। ये आदि, मध्य और अन्त त्रिप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध एवं स्कन्धों में होते हैं। इसलिये इनमें प्रत्येक स्कन्ध प्रानुपूर्वी रूप होता है। परमाणु अनानुपूर्वी रूप क्यों ? --एक परमाणु अथवा पृथक्-पृथक् स्वतंत्र सत्ता वाले अनेक परमाणुओं में प्रादि, मध्य और अंतरूपता नहीं होने से वे अनानुपूर्वी हैं / आनुपूर्वीरूपता उनमें संभव नहीं है। द्विप्रदेशिक स्कन्ध की अवक्तव्यता का कारण यद्यपि द्विप्रदेशिक स्कन्ध में दो परमाणु संश्लिष्ट रहते हैं, इसलिये यहाँ अन्योन्यापेक्षा पूर्वस्य अनु-पश्चात्--अर्थात् एक के बाद दूसरा, इस प्रकार की अनुपूर्वरूपता---पानुपूर्वी है। किन्तु मध्य के अभाव में संपूर्ण गणनानुक्रम नहीं बन पाने से द्विप्रदेशिक स्कन्ध में गणतानुक्रमात्मक प्रानुपूर्वी रूप से कथन किया जाना अशक्य है और द्विप्रदेशी स्कन्ध में परस्पर की अपेक्षा पूर्व-पश्चाद्भाव का सद्भाव होने से पुद्गल परमाणु की तरह अनानपूर्वी रूप से भी उसे नहीं कह सकते हैं। इस प्रकार प्रानुपूर्वी और अनानुपूर्वी रूप से कहा जाना शक्य नहीं होने से यह द्विप्रदेशिक स्कन्ध प्रवक्तव्य है। आदि, मध्य, अन्त का वाच्यार्थ-प्रादि अर्थात् जिससे पर (अगला) है किन्तु पूर्व नहीं। जिससे पूर्व भी है और पर भी है, यह मध्य और जिससे पूर्व तो है किन्तु पर नहीं, वह अन्त कहलाता है। बहुवचनान्त पदों का निर्देश क्यों ?.-त्रिप्रदेशिक प्रानुपूर्वी है इत्यादि एक वचनान्त से संज्ञा-संज्ञी सम्बन्ध का कथन सिद्ध हो जाने पर भी प्रानुपर्छ आदि द्रव्यों का हरएक भेद अनन्त व्यक्ति रूप है तथा नैगम एवं व्यवहारनय का ऐसा सिद्धान्त है, इस बात को प्रदर्शित करने के लिये 'त्रिप्रदेशा: प्रानुपूर्व्यः' ऐसा वहुवचनान्त प्रयोग किया है। अर्थात् त्रिप्रदेशिक एकद्रव्यरूप एक ही आनुपूर्वी नहीं किन्तु त्रिप्रदेशिकद्रव्य अनन्त हैं, अतः उतनी ही अनन्त आनुपूर्वियों की सत्ता है। क्रमविन्यास में हेतु---सूत्रकार ने एक परमाणु से निष्पन्न अनानुपूर्वी द्रव्य, परमाणुद्वय के संबन्ध से निष्पन्न अवक्तव्य द्रव्य और फिर परमाणु त्रय के संश्लेष से निष्पन्न प्रानुपूर्वी द्रव्य, इस प्रकार द्रव्य की वृद्धिरूप पूर्वानुपूर्वी क्रम का लथा इसी प्रकार परमाणुवयनिष्पन्न आनुपूर्वी, परमाणुद्वयनिष्पन्न अवक्तव्य और एक परमाणुनिष्पन्न अनानुपूर्वी रूप पश्चानुपूर्वी का उल्लंघन करके पहले प्रानुपूर्वी द्रव्य का, तदनन्तर अनानुपूर्वी द्रव्य का और सबसे अंत में प्रवक्तव्य द्रव्य का निर्देश यह स्पष्ट करने के लिये किया है कि ग्रानुपूर्वी द्रव्यों की अपेक्षा अनानुपूर्वी द्रव्य अल्प हैं और अनानुपूर्वी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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