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________________ अनुयोगद्वारसूत्र द्रव्यों की अपेक्षा प्रवक्तव्य द्रव्य और भी अल्प हैं। इस प्रकार से द्रव्य की अल्पना-न्यूनता का निर्देश करने के लिये सूत्र में यह क्रमविन्यास किया है। 100. एयाए णं गम-बवहाराणं अदुपयपरूवणयाए कि पओयणं ? एयाए णं गम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणयाए भंगसमुक्कित्तणया कीरइ। [100 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसंमत इस अर्थपदप्ररूपणा रूप प्रानुपूर्वी से क्या प्रयोजन सिद्ध होता है ? [100 उ.| आयुष्मन् ! इस नैगम-व्यवहारनयसंमत अर्थपदप्ररूपणा द्वारा भंगसमुत्कीर्तना की जाती है अर्थात् भंगों का कथन किया जाता है। विवेचन—सूत्र में यह स्पष्ट किया है कि अर्थपदप्ररूपणा का प्रयोजन यह है कि उसके बाद भंगसमत्कीर्तन रूप कार्य होता है। तात्पर्य यह है कि अर्थपदप्ररूपणा में प्रानपर्वा ह है कि अथपदप्ररूपणा में प्रानुपूर्वा, अनानपर्वी, प्रवक्तव्य संज्ञाये निश्चित होने के बाद ही भंगों का समुत्कीर्तन (कथन) हो सकता है, अन्यथा नहीं। नंगम-व्यवहारनयसंमत भंगसमुत्कीर्तन और उसका प्रयोजन 101. से कि तं गम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया ? गम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया अस्थि आणुपुत्वी 1 अस्थि अगाणुपुची 2 अस्थि अवत्तवए 3 अस्थि आणुपुवीओ 4 अस्थि अणाणुपुब्बीओ 5 अस्थि अवत्तव्वयाई 6 / अहवा अस्थि आणुपुन्वी य अणाणुपुव्वी य 1 अहवा अस्थि आणुपुन्वी य अणाणुयुवीओ य 2 अहह्वा अस्थि आणुपुत्वीओ य अणाणुपुम्वी य 3 अहवा अस्थि आणुपुन्वीओ य अणाणुयुवीओ य दक', अहवा अत्थि आणुपुची य अवतव्वए य 1 अहवा अस्थि आणुपुवी य अवत्तव्ययाई च 2 अहवा अस्थि आणुपुब्बीओ य अवत्तन्वए य 3 अहवा अस्थि अणुपुन्वीओ य अवत्तन्वयाइं च दक, अहवा अस्थि अणाणुपुन्वी य अवत्तव्वए य 1 अहवा अस्थि अणाणुपुटबी य अवत्तव्वयाई च 2 अहवा अत्थि अणाणुपुवीओ य अवत्तवए य 3 अहवा अस्थि अणाणुपुवीओ य अवत्तब्वयाइं च ट्रक / अहवा अस्थि आणुपुवी य अणाणुपुब्वी य अवत्तव्वए य 1 अहवा अस्थि आणुपुब्वी य अणाणुपुग्वी य अवत्तव्वयाई च 2 अहवा अस्थि आणुपुत्वी य अणाणुपुन्चोओ य अवत्तव्बए य 3 अहवा अस्थि आणुपुश्वी य अणाणुपुम्वीओ य अवत्तव्बयाई च ट्क अहवा अस्थि आगुपुटवीओ य अणाणुपुवी य अवत्तवए य 5 अहवा अस्थि आणुपुव्वीओ य अणाणुपुन्वी य अवत्तव्ययाइं च 6 अहवा अस्थि आणुपुत्वीओ य अणाणुपुथ्वीओ य अवत्तवए य 7 अहवा अस्थि आणुपुब्वीओ य अणाणुपुव्वीओ य अवत्तध्वयाई च 8, एए अढ भंगा। एवं सम्वे वि छव्वीसं भंगा 26 / से तं नेगम-ववहाराणं भंगसमुक्कित्तणया। [101 प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसंमत भंगसमुत्कीर्तन का क्या स्वरूप है ? 6101 उ.] आयुष्मन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तन का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिये१. 'टक' चार (4) संख्या का द्योतक अक्षरांक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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