________________ जान के पांच प्रकार [61 परिहार-विशुद्धि चारित्र का अन्तर 18 कोडाकोड़ी सागरोपम से कुछ अधिक का / ये दोनों चारित्र भरत और ऐरावत क्षेत्र में पहले और अंतिम तीर्थकर के समय में होते हैं / (8) बुद्धद्वार-बुद्धबोधित हुए सिद्ध होने का उत्कृष्ट अन्तर 1 वर्ष से कुछ अधिक का, शेष प्रत्येकबुद्ध तथा साध्वी से प्रतिबोधित हुए सिद्ध होने का संख्यात हजार वर्ष का तथा स्वयंवुद्ध का, पृथक्त्व सहस्र पूर्व का अन्तर जानना चाहिए। (8) ज्ञानद्वार–मति-श्रुत ज्ञानपूर्वक केवलज्ञान प्राप्त करके सिद्ध होने वालों का अन्तर पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण का तथा मति, श्रु त एवं अवधिज्ञान से केवलज्ञान प्राप्त करने वालों का सिद्ध होने का अंतर वर्ष से कुछ अधिक / इनके अतिरिक्त चारों ज्ञानों से केवलज्ञान प्राप्त कर सिद्ध होने वालों का उत्कृष्ट अंतर संख्यात सहस्र वर्ष का जानना चाहिए / (10) अवगाहनाद्वार----१४ राजूलोक का घन बनाया जाय तो 7 राजूलोक हो जाता है / उसमें से, एक प्रदेश की श्रेणी सात राज लम्बी है, उसके असंख्यातवें भाग में जितने आकाश प्रदेश हैं, यदि एक-एक समय में एक-एक आकाश प्रदेश का अपहरण करें तो उन्हें रिक्त होने में जितना काल लगे उतना उत्कृष्ट अवगाहना वालों का उत्कृष्ट अन्तर पड़े। मध्यम अवगाहना वालों का उत्कृष्ट अन्तर एक वर्ष से कुछ अधिक / जघन्य अन्तर सर्वस्थानों में एक समय का / (11) उत्कृष्टद्वार--अप्रतिपाती सिद्ध होने का अन्तर सागरोपम का असंख्यातवा भाग, संख्यातकाल तथा असंख्यातकाल के प्रतिपाती हुए सिद्ध होने वालों का अन्तर उ० संख्यात हजार वर्ष का तथा अनन्तकाल के प्रतिपाती हए सिद्ध होने वालों का अन्तर 1 वर्ष से कुछ अधि छ अधिक का। जघन्य सब स्थानों में एक समय का अन्तर / (12) अनुसमयद्वार—दो समय से लेकर आठ समय तक निरन्तर सिद्ध होते हैं / (13) गणनाद्वार--एकाकी या अनेक सिद्ध होने का अन्तर उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष का / (14) अल्पबहुत्वद्वार-पूर्ववत् / (7) भावद्वार भाव छः होते हैं—ौदयिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक, पारिणामिक और सान्निपातिक / क्षायिक भाव से ही सब जीव सिद्ध होते हैं। इस द्वार में 15 उपद्वारों का विवरण पूर्ववत् समझ लेना चाहिए। (8) अल्पबहुत्वद्वार ऊर्ध्वलोक से सबसे थोड़े 4 सिद्ध होते हैं / अकर्मभूमि क्षेत्रों में 10 सिद्ध होते हैं / वे उनसे संख्यातगुणा हैं / स्त्री आदि से 20 सिद्ध होते हैं / वे संख्यात गुणा होते हैं क्योंकि साध्वी का संहरण नहीं होता / उनसे अलग-अलग विजयों में तथा अधोलोक में 20 सिद्ध हो सकते हैं / उनसे 108 सिद्ध होने वाले संख्यातगुणा अधिक हैं / इस प्रकार अनन्तरसिद्ध-केवलज्ञान का वर्णन समाप्त हुश्रा / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org