________________ मिन्दीसूत्र (6) अन्तरद्वार जितने काल तक एक भी जीव सिद्ध न हो उतना समय अन्तरकाल या विरहकाल कहलाता है / यही विरहकाल यहाँ विभिन्न द्वारों से बतलाया गया है.--- (1) क्षेत्रद्वार-समुच्चय अढ़ाई द्वीप में विरह जघन्य 1 समय का, उत्कृष्ट 6 मास का। जम्बूद्वीप के महाविदेह और धातकीखंड के महाविदेह में उत्कृष्ट पृथक्त्व (2 से 6 तक) वर्ष का, पुष्करार्द्ध द्वीप में एक वर्ष से कुछ अधिक काल का विरह पड़ सकता है। (2) कालद्वार-जन्म की अपेक्षा से---५ भरत 5 एरावत में 15 कोडाकाडी सागरोपम से कुछ य का अन्तर पड़ता है। क्योंकि उत्सपिणी काल का चौथा अारा दो कोडाकोडी सागरोपम, पाँचवां तीन और छठा चार कोड़ाकोड़ी सागरोपम का होता है / अवसर्पिणी काल का पहला पारा चार, दूसरा तीन और चौथा दो कोडाकोड़ी सागरोपम का होता है / ये सब 18 कोड़ाकोड़ी हुए। इनमें से उत्सपिणी काल में चौथे पारे की प्रादि में 24 वें तीर्थंकर का शासन संख्यात काल तक चलता है / तत्पश्चात् विच्छेद हो जाता है / अवसर्पिणी काल के तीसरे आरे के अन्तिम भाग में पहले तीर्थकर पैदा होते हैं / उनका शासन तीसरे बारे में एक लाख पूर्व तक चलता है, इस कारण अठारह कोडाकोड़ी से कुछ न्यून कहा / उस शासन में से सिद्ध हो सकते हैं, उसके व्यवच्छेद होने पर उस क्षेत्र में जन्मे हुए सिद्ध नहीं होते / संहरण की अपेक्षा से उत्कृष्ट अन्तर संख्यात हजार वर्ष का है। (3) गतिद्वार-नरक से निकले हुए सिद्ध होने का उत्कृष्ट अन्तर पृथक्त्व हजार वर्ष का. तिर्यंच से निकले हुए सिद्धों का अंतर पृथक्त्व 100 वर्ष का, तिर्यंची और सौधर्म-ईशान देवलोक के देवों को छोड़कर शेष सभी देवों से आए हुए सिद्धों का अंतर 1 वर्ष से कुछ अधिक का एवं मानुषी का अंतर, स्वयंबुद्ध होने का संख्यात हजार वर्ष का / पृथ्वी, पानी, वनस्पति, सौधर्म-ईशान देवलोक के देव और दूसरी नरकभूमि, इनसे निकले हुए जीवों के सिद्ध होने का उत्कृष्ट अंतर हजार वर्ष का होता है / जघन्य सर्व स्थानों में एक समय का अंतर जानना चाहिए। (4) वेदद्वार---पुरुषवेदी से अवेदी होकर सिद्ध होने का उत्कृष्ट विरह एक वर्ष से कुछ अधिक, स्त्रीवेदी और नपुसक वेदी से अवेदी होकर सिद्ध होने वालों का उत्कृष्ट विरह संख्यात हजार वर्ष का है / पुरुष मरकर पुनः पुरुष बने, उनका सिद्धिप्राप्ति का उत्कृष्ट अन्तर एक वर्ष से कुछ अधिक है / शेष आठ भंगों के प्रत्येक भंग के अनुसार संख्यात हजार वर्षों का अंतर है। प्रत्येकबुद्ध का भी इतना ही अंतर है / जघन्य अंतर सर्व स्थानों में एक समय का है। (5) तीर्थकरद्वार-तीर्थंकर का मुक्तिप्राप्ति का उत्कृष्ट अन्तर पृथक्त्व हजार पूर्व और स्त्री तीर्थंकर का उत्कृष्ट अनन्तकाल / अतीर्थंकरों का उत्कृष्ट विरह एक वर्ष से अधिक, नोतीर्थसिद्धों (प्रत्येकबुद्धों) का संख्यात हजार वर्ष का तथा जघन्य सभी का एक समय का / (6) लिङ्गद्वार—स्वलिङ्गी सिद्ध होने का जघन्य एक समय, उत्कष्ट एक वर्ष से कुछ अधिक, अन्य लिंगी और गृहिलिगी का उत्कृष्ट संख्यात सहस्र वर्ष का / (7) चारित्रद्वार-पूर्वभाव की अपेक्षा से सामायिक, सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यात चारित्र पालकर सिद्ध होने का अन्तर एक वर्ष से कुछ अधिक काल का, शेष का अर्थात् छेदोपस्थापनीय और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org