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________________ जान के पांच प्रकार] [59 (5) कालद्वार जिन क्षेत्रों से एक समय में 108 सिद्ध हो सकते हैं, वहाँ से निरन्तर आठ समय तक सिद्ध हों, जिस क्षेत्र से 10 या 20 सिद्ध हो सकते हैं, वहाँ चार समय तक निरन्तर सिद्ध हो, जहाँ से 2, 3, 4, सिद्ध हो सकते हैं, वहाँ दो समय तक निरतर सिद्ध हों। इसमें भी क्षेत्रादि उपद्वार घटाते हैं :--- (1) क्षेत्र द्वार—एक समय में 15 कर्मभूमियों में 108 उत्कृष्ट सिद्ध हो सकते हैं, वहाँ अन्तर रहित आठ समय तक सिद्ध हो सकते हैं। अकर्मभूमि तथा अधोलोक में चार समय तक, नन्दन वन, पाण्डुक-वन और लवण समुद्र में निरंतर दो समय तक, और ऊर्ध्वलोक में निरंतर चार समय तक सिद्ध हो सकते हैं। (2) कालद्वार--प्रत्येक अवसर्पिणी और उसपिणी के तीसरे, चौथे बारे में निरंतर आठआठ समय तक और शेष प्रारों में 4-4 समय तक निरंतर सिद्ध हो सकते हैं / (3) गतिद्वार-देवगति से आए हए उत्कृष्ट पाठ समय तक, शेष तीन गतियों से चार-चार समय तक निरन्तर सिद्ध हो सकते हैं / (4) वेदद्वार-जो पूर्वजन्म में पुरुष थे और इस भव में भी पुरुष हों, वे उत्कृष्ट 8 समय तक और शेष भंगों वाले 4 समय तक निरंतर सिद्ध हो सकते हैं। (5) तीर्थद्वार–किसी भी तीर्थंकर के शासन में उत्कृष्ट 8 समय तक तथा पुरुष तीर्थंकर और स्त्री तीर्थकर निरन्तर दो समय तक सिद्ध हो सकते हैं, अधिक नहीं / (6) लिङ्गद्वार-स्वलिङ्ग में आठ समय तक, अन्य लिङ्ग में 4 समय तक, गृहिलिंग में निरंतर दो समय तक सिद्ध हो सकते हैं। (7) चारित्रद्वार----जिन्होंने क्रमशः पाँचों ही चारित्रों का पालन किया हो, वे चार समय तक, शेष तीन या चार चारित्र वाले उत्कृष्ट आठ समय तक लगातार सिद्ध हो सकते हैं। (8) बुद्धद्वार-बुद्धबोधित आठ समय तक, स्वयंबुद्ध दो समय तक, सामान्य साधु या साध्वी के द्वारा प्रतिबुद्ध हुए चार समय तक निरंतर सिद्ध हो सकते हैं / (8) ज्ञानद्वार–प्रथम दो ज्ञानों से (मति, श्रुत से) केवली हुए दो समय तक; मति, श्रुत एवं मन:पर्यवज्ञान से केवली हुए 4 समय तक तथा मति, श्रुत, अवधि ज्ञान से और चारों ज्ञानपूर्वक केवली हुए 8 समय तक सिद्ध हो सकते हैं / (10) अवगहनाद्वार-उत्कृष्ट अवगाहना वाले दो समय तक, मध्यम अवगाहना वाले निरन्तर 8 समय तक, जघन्य अवगाहना वाले दो समय तक निरंतर सिद्ध हो सकते हैं / (11) उत्कृष्टद्वार-अप्रतिपाती सम्यक्त्वी दो समय तक, संख्यात एवं असंख्यात काल तक के प्रतिपाती उत्कृष्ट 4 समय तक, अनन्तकाल प्रतिपाती सम्यक्त्वी उत्कृष्ट 8 समय तक सिद्ध हो सकते हैं। नोट--शेष चार उपद्वार घटित नहीं होते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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