________________ ज्ञान के पांच प्रकार] [57 (15) अल्पबहुत्वद्वार-एक समय में दो, तीन आदि सिद्ध होने वाले स्वल्प जीव हैं / एकएक सिद्ध होने वाले उनसे संख्यात गुणा अधिक हैं। (2) द्रव्यद्वार (1) क्षेत्रद्वार-ऊर्ध्वदिशा में एक समय में चार सिद्ध होते हैं। जैसे—निषधपर्वत, नन्दनवन और मेरु प्रादि के शिखर से चार, नदी नालों से तीन, समुद्र में दो, पण्डकवन में दो, तीस प्रकर्मभूमि क्षेत्रों में से प्रत्येक में दस-दस, ये सब संहरण की अपेक्षा से हैं। प्रत्येक विजय में जघन्य 20, उत्कृष्ट 108 / पन्द्रह कर्मभूमि क्षेत्रों में एक समय में उत्कृष्ट 108 सिद्ध हो सकते हैं, अधिक नहीं / (2) कालद्वार--अवसर्पिणी काल के तोसरे और चौथे बारे में एक समय में उत्कृष्ट 108 तथा पाँचवें पारे में 20 सिद्ध हो सकते हैं, अधिक नहीं / उत्सपिणो काल के तीसरे और चौथे पारे में भी ऐसा ही समझना चाहिए। शेष सात ग्रारों में सहरण की अपेक्षा एक समय में दस-दस सिद्ध हो सकते हैं। (3) गतिद्वार-रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, और बालुकाप्रभा, इन नरकभूमियों से निकले हुए एक समय में दस, पंकप्रभा से निकले हुए चार, सामान्य रूप से तिर्यंच से निकले हुए दस, विशेष रूप से पृथ्वीकाय और अप्काय से चार-चार और वनस्पतिकाय से आए छह सिद्ध हो सकते हैं / विकलेन्द्रिय तथा असंज्ञो तिर्यक्रपंचेन्द्रिय से निकले हुए जीव सिद्ध नहीं हो सकते / सामान्यतः मनुष्य गति से आए हुए बीस, मनुष्यपुरुषों से निकले हुए दश, मनुष्यस्त्री से बीस / सामान्यत: देवगति से आए हुए एक सौ पाठ सिद्ध हो / भवनपति एवं व्यंतर देवों से दस-दस तथा उनकी देवियों से पांच-पाँच / ज्योतिष्क देवों से दस, देवियों से बीस और वैमानिक देवों से आए हुए 108 तथा उनकी देवियों से आए हुए एक समय में बीस सिद्ध हो सकते हैं। (4) वेदद्वार-एक समय में स्त्रीवेदी 20, पुरुषवेदी 108 और नपुसकवेदी 10 सिद्ध हो सकते हैं / पुरुष मरकर पुनः पुरुष बनकर 108 सिद्ध हो सकते हैं / (5) तीर्थकरद्वार--एक समय में पुरुष तीर्थकर चार और स्त्री तीर्थकर दो सिद्ध हो सकते हैं। (6) बुद्धद्वार—एक समय में प्रत्येकबुद्ध 10, स्वयंबुद्ध 4, बुद्ध-बोधित 108 सिद्ध हो सकते हैं / (7) लिङ्गद्वार-एक समय में गृहलिङ्गी चार, अन्य लिङ्गी दस, स्वलिङ्गी एक सौ पाठ सिद्ध हो सकते हैं। (8) चारित्रद्वार-सामायिक चारित्र के साथ सूक्ष्मसाम्पराय तथा यथाख्यात चारित्र पालकर एक समय में 108, तथा छेदोपस्थापनासहित चार चारित्रों का पालन करने वाले भी 108 और पाँचों की आराधना करने वाले एक समय में 10 सिद्ध हो सकते हैं। (6) ज्ञानद्वार--पूर्वभाव की अपेक्षा से एक समय में मति एवं श्रुतज्ञान के धारक उत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org