________________ ज्ञान के पांच प्रकार सजोगिभवत्थ-केवलणाणं च, अचरमसमय-सजोगिभवत्थ-केवलणाणं च। से तं सजोगिभवत्थकेवलणाण। से कि तं प्रजोगिभवत्थ-केवलणाण ? प्रजोगिभवस्थ-केवलणाणं दुविहं पण्णत्तं तं जहापढमसमय-अजोगिभवत्थ-केवलणाणं च, अपढमसमय-प्रजोगिभवत्थ-केवलणाणं च / अहवा चरमसमय-प्रजोगिमवत्यकेवलणाणं, अचरमसमय-प्रजोगिभवत्थकेवलणाणं च / से तं भवत्थ-केवलणाणं। ३९-गौतम स्वामी ने पूछा---भगवन् ! केवलज्ञान का स्वरूप क्या है ? उत्तर—गौतम ! केवलज्ञान दो प्रकार का प्रतिपादन किया गया है, जैसे ----(1) भवस्थकेवलज्ञान और (2) सिद्ध-केवलज्ञान / प्रश्न- भवस्थ-केवलज्ञान कितने प्रकार का है ? उत्तर-भवस्थ-केवलज्ञान दो प्रकार का है / यथा-(१) सयोगिभवस्थ-केवलज्ञान एवं (2) अयोगिभवस्थ केवलज्ञान / प्रश्न- भगवन् ! सयोगिभवस्थ-केवलज्ञान कितने प्रकार का है ? भगवान् ने उत्तर दिया-गौतम ! सयोगिभवस्थ-केवलज्ञान भी दो प्रकार का है, यथाप्रथमसमय-सयोगिभवस्थ केवलज्ञान अर्थात् जिसे उत्पन्न हुए प्रथम ही समय हो और दूसरा अप्रथमसमय-सयोगिभनस्थ केवलज्ञान-जिस ज्ञान को पैदा हुए एक से अधिक समय हो गये हों।। इसे अन्य दो प्रकार से भी बताया है। यथा (1) चरमसमय-सयोगिभवस्थ केवलज्ञान-सयोगि अवस्था में जिसका अन्तिम एक समय शेष रह गया है, ऐसे भवस्थकेवली का ज्ञान (2) अचरम समय-सयोगिभवस्थ केवलज्ञान-सयोगि-अवस्था में जिसके अनेक समय शेष रहते हैं उसका केवलज्ञान / इस प्रकार यह सयोगिभवस्थ-केवलज्ञान का वर्णन है / प्रश्न---अयोगिभवस्थ केवलज्ञान कितने प्रकार का है ? उत्तर-अयोगिभवस्थ केवलज्ञान दो प्रकार का है / यथा--- (1) प्रथमसमय-अयोगिभवस्थ केवलज्ञान अप्रथमसमय-अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान अथवा (1) चरमसमय-अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान (2) अचरमसमय-अयोगिभवस्थ-केवलज्ञान इस प्रकार अयोगिभवस्थ केवलज्ञान का वर्णन पूरा हुआ / यही भवस्थ-केवलज्ञान है / विवेचन-यहाँ सकल प्रत्यक्ष का स्वरूप बताया गया है। अरिहन्त और सिद्ध भगवान में केवलज्ञान समान होने पर भी स्वामी के भेद से उसके दो भेद किये हैं-(१) भवस्थकेवलज्ञान और (2) सिद्धकेवलज्ञान / जो ज्ञान ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय, इन चार घातिकर्मों के क्षय होने से उत्पन्न होता है, वह आवरण से सर्वथा रहित एवं पूर्ण होता है। जिस प्रकार रवि-मण्डल में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org