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________________ 44] [नन्दीसूत्र शुष्क शुक्रपुद्गलों में, स्त्री-पुरुष के संयोग में, शव में, नगर तथा गांव की गंदी नालियों में तथा अन्य सभी अशुचि स्थानों में संमूछिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं / संमूछिमों की अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र की ही होती है। वे मनरहित, मिथ्यादृष्टि, अज्ञानी, सभी प्रकार से अपर्याप्त होते हैं / उनकी आयु सिर्फ अन्तमुहूर्त की होती है, अत: चारित्र का अभाव होने से इन्हें मनःपर्यवज्ञान नहीं होता। ३०--जइ गब्भवतियमणुस्साणं कि कम्मभूमगगब्भवतियमणुस्साणं, अकम्मभूमगगब्भवपतियमणस्साणं, अंतरदीवगगम्भवतियमणस्साणं ? गोयमा ! कम्मभमगगनभवक्कंतियमणस्साणं, णो अकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणुस्साणं णो अंतरदीवगगम्भवक्कंतियमणुस्साणं / 30 - यदि गर्भज मनुष्यों को मन:पर्यवज्ञान होता है तो क्या कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है, अकर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है अथवा अन्तरद्वीपज गर्भज मनुष्यों को होता है ? उत्तर-गौतम ! कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को ही मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न होता है, अकर्मभूमिज गर्भज और अंतरद्वीपज गर्भज मनुष्यों को नहीं होता। विवेचन-जहां असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, कला, शिल्प, राजनीति एवं चार तीर्थों की प्रवृत्ति हो वह कर्मभूमि कहलाती है। 30 अकर्मभूमि और 56 अंतरद्वीप अकर्मभूमि या भोगभूमि कहलाते हैं। अकर्मभूमिज मानवों का जीवनयापन कल्पवृक्षों पर निर्भर होता है। इनका विस्तृत वर्णन जीवाभिगम सूत्र में किया गया है। ३१–जइ कम्मभूमग-गब्भवतिय मणुमस्साणं कि संखेज्जवासाउय-कम्मभूभग-गम्भवक्कंतियमणुमस्साणं असंखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गम्भवतिय मण्णुस्साणं ? गोयमा ! संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गम्भवक्कंतिय-मणुस्साणं, णो असंखेज्जवासाउयकम्मभूमग-गब्भवतिय-मणुस्साणं / ३१-प्रश्न-यदि कर्मभूमिज मनुष्यों को मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न होता है तो क्या संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है अथवा असंख्यात वर्ष की आयु प्राप्त कर्मभूमिज मनुष्यों को होता है ? उत्तर--गौतम ! संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज मनुष्यों को ही उत्पन्न होता है, असंख्यात वर्ष की आयुष्य प्राप्त कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को नहीं होता। विवेचन-गर्भज मनुष्य संख्यात एवं असंख्यात वर्ष की आयु वाले, अर्थात् दो प्रकार के होते हैं / संख्यात वर्ष की आयु से यहाँ तात्पर्य है, जिसकी आयु कम से कम 6 वर्ष की और उत्कृष्ट करोड़ पूर्व की हो / इससे अधिक आयु वाला असंख्यात वर्ष की आयु प्राप्त कहलाता है तथा मनःपर्यवज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। ३२---जइ संखेज्जवासाउय-कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं, कि पज्जत्तगसंखेज्जवासाउयकम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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