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________________ 36 निन्दीसूत्र भविष्य एवं वर्तमान काल देखता है। यदि क्षेत्र से रुचक क्षेत्र पर्यन्त देखता है तो काल से पृथक्त्व (दो से लेकर नौ वर्ष तक) भूत और भविष्यत् काल को जानता है। १९-संखेज्जम्मि उ काले दीव-समुद्दा वि होंति संखेज्जा। कालम्मि असंखेज्जे दीव-समुद्दा उ भइयव्वा / १६--अवधिज्ञानी यदि काल से संख्यात काल को जाने को क्षेत्र से भी संख्यात द्वीप-समुद्र पर्यन्त जानता है और असंख्यात काल जानने पर क्षेत्र से द्वीपों एवं समुद्रों की भजना जाननी चाहिए अर्थात् संख्यात अथवा असंख्यात द्वीप-समुद्र जानता है / २०-काले चउण्ह वुड्ढी कालो भइयव्वु खेत्तवुड्ढोए / वुड्ढीए दव-पज्जव भइयत्वा खेत्त-काला उ॥ २०–काल की वृद्धि होने पर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव चारों को अवश्य वृद्धि होती है। क्षेत्र की वृद्धि होने पर काल की भजना है / अर्थात् काल की वृद्धि हो सकती है और नहीं भी हो सकती। द्रव्य और पर्याय की वृद्धि होने पर क्षेत्र और काल भजनीय होते हैं अर्थात् वृद्धि पाते भी हैं और नहीं भी पाते हैं। २१--सुहुमो य होइ कालो तत्तो सुहमयरयं हवइ खेत्तं / अंगलसेढीमेत्ते प्रोसप्पिणिश्रो असंखेज्जा। से तं वड्ढमाणयं प्रोहिणाणं / २१-काल सूक्ष्म होता है किन्तु क्षेत्र उससे भी सूक्ष्म अर्थात् सूक्ष्मतर होता है, क्योंकि एक अङ्गल मात्र श्रेणी रूप क्षेत्र में आकाश के प्रदेश असंख्यात अवसपिणियों के समय जितने होते हैं / यह वर्द्व मानक अवधिज्ञान का वर्णन है। विवेचन क्षेत्र और काल में कौन किससे सूक्ष्म है ? सूत्रकार ने स्वयं ही इसका उत्तर देते हुए कहा है- काल सूक्ष्म है किन्तु वह क्षेत्र की अपेक्षा से स्थूल है / क्षेत्र काल की अपेक्षा से सूक्ष्म है क्योंकि प्रमाणांगूल बाहल्य-विष्कम्भ श्रेणि में प्राकाश प्रदेश इतने हैं कि यदि उन प्रदेशों का प्रतिसमय अपहरण किया जाय तो निर्लेप होने में असंख्यात अवपिणी तथा उत्सपिणी काल व्यतीत हो जाएँ। क्षेत्र के एक-एक आकाशप्रदेश पर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध अवस्थित हैं / द्रव्य की अपेक्षा भाव सूक्ष्म है, क्योंकि उन स्कन्धों में अनन्त परमाणु रहे हुए हैं और प्रत्येक परमाणु में वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श की अपेक्षा से अनन्त पर्यायें वर्तमान हैं / काल, क्षेत्र, द्रव्य और भाव ये क्रमश: सूक्ष्मतर हैं। अवधिज्ञानी रूपी द्रव्यों को ही जान सकता है, अरूपी को विषय नहीं करता। अतएव मूलपाठ में जहाँ क्षेत्र और काल को जानना कहा गया है वहाँ उतने क्षेत्र और काल में अवस्थित रूपी द्रव्य समझना चाहिए, क्योंकि क्षेत्र और काल अरूपी हैं। परमावधिज्ञान केवलज्ञान होने से अन्तर्मुहर्त पहले उत्पन्न होता है। उसमें परमाणु को भी विषय करने की शक्ति है / इस प्रकार उत्कृष्ट अवधिज्ञान का विषय वर्णन किया गया है फिर भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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