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________________ ज्ञान के पांच प्रकार तेजस्काय के जीव चार प्रकार के होते हैं। (1) पर्याप्त तथा अपर्याप्त सूक्ष्म तथा (2) पर्याप्त एवं अपर्याप्त बादर / इन चारों में से प्रत्येक में असंख्यातासंख्यात जीव होते हैं। इन जीवों की उत्कृष्ट संख्या तीर्थंकर भगवान् अजितनाथ के समय में हुई थी। यदि उन जीवों में से प्रत्येक जीव को उसकी अवगाहना के अनुसार आकाशप्रदेशों पर लगातार रखा जाए और उनकी श्रेणी बनाई जाए तो वह श्रेणी इतनी लम्बी होगी कि लोकाकाश से भी आगे अलोकाकाश में पहुंच जाएगी। उस श्रेणी को सब ओर घुमाया जाय तो उसकी परिधि में लोकाकाश जितने अलोकाकाश के असंख्यात खंडों का समावेश हो जायगा। इस प्रकार उन जीवों के द्वारा जितना क्षेत्र भरे उतना क्षेत्र परम-अवधिज्ञान का विषय है। यद्यपि समस्त अग्निकाय के जीवों की श्रेणी-सूची कभी किसी ने बनाई नहीं है और न उसका बनना संभव ही है। अलोकाकाश में कोई मूर्त पदार्थ भी नहीं है जिसे अवधिज्ञानी जाने / किन्तु परमावधिज्ञान का सामर्थ्य प्रदर्शित करने के लिए यह मात्र कल्पना की गई है। अवधिज्ञान का मध्यम क्षेत्र १६–अंगुलमावलियाणं भागमसंखेज्ज दोसु संखेज्जा। अंगुलमावलियंतो आलिया अंगुलपुहुत्तं // १६-क्षेत्र और काल के आश्रित-अवधिज्ञानी यदि क्षेत्र से अंगुल (उत्सेध या प्रामाणांगुल) के असंख्यातवें भाग को जानता है तो काल से भी आवलिका के असंख्यातवें भाग को जानता है। इसी प्रकार यदि क्षेत्र से अंगुल के संख्यातवें भाग को जानता है तो काल से भी आवलिका का संख्यातवाँ भाग जान सकता है। यदि अंगुलप्रमाण क्षेत्र देखे तो काल से प्रावलिका से कुछ कम देखे और यदि सम्पूर्ण श्रावलिका प्रमाण काल देखें तो क्षेत्र से अंगुलपृथक्त्व प्रमाण अर्थात् 2 से 6 अंगुल पर्यन्त देखे। १६--हत्थम्मि महत्तंतो दिवसंतो गाउयम्मि बोद्धब्बो। जोयण दिवसपुहंतं पक्खंतो पण्णवीसाम्रो / १७-यदि क्षेत्र से एक हस्तपर्यंत देखे तो काल से एक मुहूर्त से कुछ न्यून देखे और काल से दिन से कुछ कम देखे तो क्षेत्र से एक गव्यूति अर्थात् कोस परिमाण देखता है, ऐसा जानना चाहिए / यदि क्षेत्र से योजन परिमाण अर्थात् चार कोस परिमित देखता है तो काल से दिवस पृथकत्व-दो से नौ दिन तक देखता है। यदि काल से किञ्चित् न्यून पक्ष देखे तो क्षेत्र से पच्चीस योजन पर्यन्त देखता है अर्थात् जानता है / १८-भरहम्मि अद्धमासो जंबुद्दीवम्मि साहितो मासो। वासं च मणुयलोए वासपुहुतं च रुयगम्मि / / १८--यदि क्षेत्र से सम्पूर्ण भरतक्षेत्र को देखे तो काल से अर्धमास परिमित भूत, भविष्यत् एवं वर्तमान, तीनों कालों को जाने / यदि क्षेत्र से जम्बूद्वीप पर्यन्त देखता है तो काल से एक मास से भी अधिक देखता है। यदि क्षेत्र से मनुष्यलोक परिमाण क्षेत्र देखे तो काल से एक वर्ष पर्यन्त भूत, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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