SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 32] [नन्दीसूत्र से कि तं पुरतो अंतगयं ? पुरतो अंतगयं से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चडुलियं वा अलायं वा मणि वा जोइं वा पईवं वा पुरो काउं परिकड्ढेमाणे परिकड्ढेमाणे गच्छेज्जा, से तं पुरप्रो अंतगयं। से कि तं मग्गो अंतगयं ? से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चलियं वा अलायं वा मणि या पईवं वा जोइं वा मग्गयो काउं अणुकड्ढेमाणे अणुकड्ढेमाणे मच्छिज्जा, से तं मग्गो अंतगयं / से किं तं पासपो अंतगयं ? पासपो अन्तगयं-से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चडुलियं वा अलायं वा मणि वा पईवं वा जोइं वा पासो काउं परिकड्ढेमाणे परिकड्ढेमाणे गच्छिज्जा, से तं पासपो अंतगयं / से तं अन्तगयं / से कि तं मझगयं ? से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चडुलियं वा अलायं वा मणि वा पईवं वा जोइं वा मत्थए काउं गच्छेज्जा / से तं मझगयं / १०-शिष्य ने प्रश्न किया-भगवन् ! वह आनुगामिक अवधिज्ञान कितने प्रकार का है ? गुरु ने उत्तर दिया-पानुगामिक अवधिज्ञान दो प्रकार का है / यथा--(१) अन्तगत (2) मध्यगत। प्रश्न-अन्तगत अवधिज्ञान कौनसा है ? उत्तर -अन्तगत अवधिज्ञान तीन प्रकार का है--(१) पुरतःअन्तगत--आगे से अन्तगत (2) मार्गत: अन्तगत—पीछे से अन्तगत (3) पार्वतः अन्तगत--पार्श्व से अन्तगत / प्रश्न--आगे से अन्तगत अवधिज्ञान कैसा है / उत्तर--जैसे कोई व्यक्ति दीपिका, घासफस को पलिका अथवा जलते हुए काष्ठ, मणि, प्रदीप या किसी पात्र में प्रज्वलित अग्नि रखकर हाथ अथवा दण्ड से उसे आगे करके क्रमशः ग्रागे चलता है और उक्त पदार्थों द्वारा हुए प्रकाश से मार्ग में स्थित वस्तुओं को देखता जाता है / इसी प्रकार पुरतःअन्तगत अवधिज्ञान भी आगे के प्रदेश में प्रकाश करता हुआ साथ-साथ चलता है। प्रश्न-मार्गतः अन्तगत अवधिज्ञान किस प्रकार का है ? उत्तर- जैसे कोई व्यक्ति उल्का, तणपूलिका, अग्रभग से जलते हुए काष्ठ, मणि, प्रदीप एवं ज्योति को हाथ या किसी दण्ड द्वारा पीछे करके उक्त वस्तुओं के प्रकाश से पीछे-स्थित पदार्थों को देखता हुआ चलता है, उसी प्रकार जो ज्ञान पीछे के प्रदेश को प्रकाशित करता है वह मार्गतः अन्तगत अवधिज्ञान कहलाता है। प्रश्न-पार्श्व से अन्तगत अवधिज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर-पार्वतो अन्तगत अवधिज्ञान इस प्रकार जाना जा सकता है जैसे कोई पुरुष दीपिका, चटुलो, अग्रभाग से जलते हुए काठ को, मणि, प्रदीप या अग्नि को पार्श्वभाग से परिकर्षण करते (खींचते हुए चलता है, इसी प्रकार यह अवधिज्ञान पार्श्ववर्ती पदार्थों का ज्ञान कराता हुआ प्रात्मा के साथ-साथ चलता है / उसे हो पावतो अन्तगत अवधिज्ञान कहते हैं / कोई-कोई अवधिज्ञान क्षयोपशम की विचित्रता से एक पार्श्व के पदार्थों को ही प्रकाशित करता है, कोई-कोई दोनों पार्श्व के पदाथों को। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy