________________ ज्ञान के पांच प्रकार [31 8--ज्ञान, दर्शन एवं चारित्ररूप गुण-सम्पन्न मुनि को जो क्षायोपशमिक अवधिज्ञान समुत्पन्न होता है, वह संक्षेप में छह प्रकार का है / यथा-- (1) आनुगामिक-जो साथ चलता है / (2) अनानुगामिक-जो साथ नहीं चलता। (3) वर्द्धमान-जो वद्धि पाता जाता है। (4) हीयमान–जो क्षीण होता जाता है / (5) प्रतिपातिक-जो एकदम लुप्त हो जाता है / (6) अप्रतिपातिक-जो लुप्त नहीं होता। विवेचन–मूलगुण और उत्तरगुणों से सम्पन्न अनगार को जो अवधिज्ञान उत्पन्न होता है उसके छह प्रकार संक्षिप्त में कहे गए हैं (1) प्रानुगामिक-जैसे चलते हुए पुरुष के साथ नेत्र, सूर्य के साथ आतप तथा चन्द्र के साथ चांदनी बनी रहती है, इसी प्रकार आनुगामिक अवधिज्ञान भी जहां कहीं अवधिज्ञानी जाता है, उसके साथ विद्यमान रहता है, साथ-साथ जाता है। (2) अनानुगामिक-जो साथ न चलता हो किन्तु जिस स्थान पर उत्पन्न हुआ हो उसी स्थान पर स्थित होकर पदार्थों को देख सकता हो, वह अनानुगामिक अवधिज्ञान कहलाता है / जैसे दीपक जहाँ स्थित हो वहीं से वह प्रकाश प्रदान करता है पर किसी भी प्राणो के साथ नहीं चलता। यह ज्ञान क्षेत्ररूप बाह्य निमित्त से उत्पन्न होता है, अतएव ज्ञानी जब अन्यत्र जाता है, तब वह क्षेत्र रूप निमित्त नहीं रहता, इस कारण वह लुप्त हो जाता है। (3) वर्द्ध मानक-जैसे-जैसे अग्नि में ईंधन डाला जाता है वैसे-वैसे वह अधिकाधिक वृद्धिगत होती है तथा उसका प्रकाश भी बढ़ता जाता है। इसी प्रकार ज्यों-ज्यों परिणामों में विशुद्धि बढ़ती जाती है त्यों-त्यों अवधिज्ञान भी वृद्धिप्राप्त होता जाता है। इसीलिए इसे वर्द्ध मानक अवधिज्ञान कहते हैं। (4) हीयमानक-जिस प्रकार ईंधन की निरंतर कमी से अग्नि प्रतिक्षण मंद होती जाती है, उसी प्रकार संक्लिष्ट परिणामों के बढ़ते जाने पर अवधिज्ञान भी हीन, हीनतर एवं हीनतम होता चला जाता है। (5) प्रतिपातिक-जिस प्रकार तेल के न रहने पर दीपक प्रकाश देकर सर्वथा बुझ जाता है, उसी प्रकार प्रतिपातिक अवधिज्ञान भी दीपक के समान ही युगपत् नष्ट हो जाता है। (6) अप्रतिपातिक-जो अवधिज्ञान, केवलज्ञान उत्पन्न होने से पूर्व नहीं जाता है अर्थात् पतनशील नहीं होता इसे अप्रतिपातिक कहते हैं। __ प्रानुगामिक अवधिज्ञान १०–से कि तं पाणुगामियं प्रोहिणाणं? प्राणुगामियं प्रोहिणाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा–अंतगयं च मझगयं च / से कि तं अंतगयं ? अंतगयं तिविहं पण्णत्तं, तं जहा-पुरो अंतगयं (2) मग्गो अंतगयं (3) पासतो अंतगयं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org