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________________ ज्ञान के पांच प्रकार (2) चक्षुरिन्द्रिय प्रत्यक्ष-जो आँख से होता है / (3) घ्राणेन्द्रिय प्रत्यक्ष-जो नाक से होता है। (4) जिहन्द्रिय प्रत्यक्ष--जो जिह्वा से होता है। (5) स्पर्शनेन्द्रिय प्रत्यक्ष-जो त्वचा से होता है। विवेचन--श्रोत्रेन्द्रिय का विषय शब्द है। शब्द दो प्रकार का होता है, 'ध्वन्यात्मक' और 'वर्णात्मक' | दोनों से ही ज्ञान उत्पन्न होता है। इसी प्रकार चक्षु का विषय रूप है / घ्राणेन्द्रिय का गन्ध, रसनेन्द्रिय का रस एवं स्पर्शनेन्द्रिय का विषय स्पर्श है। यहाँ एक शंका उत्पन्न हो सकती है कि स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और नेत्र, इस क्रम को छोड़कर श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय इत्यादि क्रम से इन्द्रियों का निर्देश क्यों किया गया है ? का के उत्तर में बताया गया है कि इसके दो कारण हैं। एक कारण तो पूर्वानुपूर्वी और पश्चादनुपूर्वी दिखलाने के लिए सूत्रकार ने उत्क्रम की पद्धति अपनाई है / दूसरा कारण यह है कि जिस जीव में क्षयोपशम और पुण्य अधिक होता है वह पंचेन्द्रिय बनता है, उससे न्यून हो तो चतुरिन्द्रिय बनता है / इसी क्रम से जब पुण्य और क्षयोपशम सर्वथा न्यून होता है तब जीव एकेन्द्रिय होता है। अभिप्राय यह है कि जब क्षयोपशम और पुण्य को मुख्यता दी जाती है तब उत्क्रम से इन्द्रियों की गणना प्रारम्भ होती है और जब जाति की अपेक्षा से गणना की जाती है तब पहले स्पर्शन, रसन प्रादि क्रम को सूत्रकार अपनाते हैं / पाँचों इन्द्रियाँ और छठा मन, ये सभी श्रुतज्ञान में निमित्त हैं किन्तु श्रोत्रेन्द्रिय श्रुतज्ञान में मुख्य कारण है / अत: सर्वप्रथम श्रोत्रेन्द्रिय का नाम निर्देश किया गया है। पारमार्थिक प्रत्यक्ष के तीन भेद ५.--से कि तं नोइंदियपच्चक्खं? नोइंदियपच्चक्खं तिविहं पण्णत्तं, तं जहा-(१) प्रोहिणाणपच्चक्वं (2) मणपज्जवणाणपच्चक्खं (3) केवलणाणपच्चक्खं / ५-शिष्य के द्वारा प्रश्न किया गया-भगवन् ! बिना इन्द्रिय एवं मन आदि बाह्य निमित्त की सहायता के साक्षात् आत्मा से होने वाला नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष क्या है ? उत्तर-नोइन्द्रियज्ञान तीन प्रकार का है / (1) अवधिज्ञान प्रत्यक्ष (2) मनःपर्यवज्ञानप्रत्यक्ष (3) केवलज्ञानप्रत्यक्ष / ६-से कि तं प्रोहिणाणपच्चक्खं ? प्रोहिणाणपच्चक्खं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा–मवपच्चतियं च खम्रोवसमियं च। ६–प्रश्न-- भगवन् ! अवधिज्ञान प्रत्यक्ष क्या है ? उत्तर–अवधिज्ञान के दो भेद हैं-(१) भवप्रत्ययिक (2) क्षायोपशमिक ! ७-दोण्हं भवपच्चतियं, तंजहा-देवाणं च रतियाणं च / ७–प्रश्न-भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान किन्हें होता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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