________________ 28) [नन्दीसूत्र श्रोत्रेन्द्रिय का संस्थान कदम्ब पुष्प के समान, चक्षुरिन्द्रिय का संस्थान मसूर और चन्द्र के के समान गोल, घ्राणेन्द्रिय का आकार अतिमुक्तक के समान, रसनेन्द्रिय का संस्थान क्षुरप्र (खुरपा) के समान और स्पर्शनेन्द्रिय का संस्थान नाना प्रकार का होता है। अत: आभ्यंतर निर्वृत्ति सबकी समान ही होती है / आभ्यंतर निर्वृत्ति से उपकरणेन्द्रिय की शक्ति विशिष्ट होती है। भावेन्द्रिय के दो प्रकार हैं-लब्धि और उपयोग / मतिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होने वाले एक प्रकार के आत्मिक परिणाम को लब्धि कहते हैं। तथा शब्द, रूप आदि विषयों का सामान्य एवं विशेष प्रकार से जो बोध होता है, उस बोध-रूप व्यापार को उपयोग-इन्द्रिय कहते हैं। स्मरणीय है कि इन्द्रियप्रत्यक्ष में द्रव्य और भाव दोनों प्रकार की इन्द्रियों का ग्रहण होता है और एक का भी अभाव होने पर इन्द्रिय-प्रत्यक्ष की उत्पत्ति नहीं हो सकती। नो-इंदियपच्चक्ख-इस पद में 'नो' शब्द सर्वनिषेधवाची है। नोइन्द्रिय मन का नाम भी है। अतः जो प्रत्यक्ष इन्द्रिय मन तथा आलोक आदि बाह्य साधनों की अपेक्षा नहीं रखता, जिसका सीधा सम्बन्ध प्रात्मा से हो उसे नोइन्द्रिय-प्रत्यक्ष कहते हैं। से' यह निपात शब्द मगधदेशीय है, जिसका अर्थ 'अथ' होता है। इन्द्रियप्रत्यक्ष ज्ञान का कथन लौकिक व्यवहार की अपेक्षा से किया गया है, परमार्थ की अपेक्षा से नहीं / क्योंकि लोक में यही कहने की प्रथा है--"मैंने आँखों से प्रत्यक्ष देखा है।" इसी को सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहते हैं, जैसे कि यदिन्द्रियाश्रितमपरव्यवधानरहितं ज्ञानमुदयते तल्लोके प्रत्यक्षमिति व्यवहृतम्, अपरधूमादिलिङ्गनिरपेक्षतया साक्षादिन्द्रियमधिकृत्य प्रवर्तनात् / " इससे भी उक्त कथन की पुष्टि होती है। यहाँ एक बात विशेष रूप से ध्यान आकर्षित करती है। वह यह कि प्रश्न किया गया है कि प्रत्यक्ष किसे कहते हैं ? किन्तु उत्तर में उसके भेद बतलाए गए हैं। इसका क्या कारण है ? उत्तर यह है कि यहाँ प्रत्यक्षज्ञान का स्वरूप बतलाना अभीष्ट है। किसी भी वस्तु का स्वरूप बतलाने की अनेक पद्धतियां होती हैं। कहीं लक्षण द्वारा, कहीं उसके स्वामी, द्वारा कहीं क्षेत्रादि द्वारा, और व भेदों के द्वारा बस्त का स्वरूप प्रदर्शित किया जाता है। यहाँ और आगे भी अनेक स्थलों पर भेदों द्वारा स्वरूप प्रदर्शित करने की शैली अपनाई गई है / आगम में यह स्वीकृत परिपाटी है / जैसे लक्षण द्वारा वस्तु का स्वरूप समझा जा सकता है, उसी प्रकार भेदों द्वारा भी समझा जा सकता है / सांव्यावहारिक प्रत्यक्ष के प्रकार ४-से कि तं इंदिय पच्चक्खं ? इंदियपच्चक्खं पंचविहं पण्णतं, तं जहा--(१) सोइंदियपच्चक्खं, (2) चक्खिदिय पच्चक्खं, (3) घाणिदियपच्चपखं, (4) रसनेदियपच्चक्खं, (5) फासिदियपच्चक्खं / से त्तं इंदियपच्चक्खं / ४---प्रश्न-भगवन् ! इन्द्रियप्रत्यक्ष ज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर--इन्द्रियप्रत्यक्ष पाँच प्रकार का है / यथा-- (1) श्रोत्रेन्द्रिय प्रत्यक्ष-जो कान से होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org