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________________ परिषद् के तीन प्रकार ५२-सा समासओ तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-जाणिया, प्रजाणिया, दुवियड्ढा / जाणिया जहा--- खीरमिव जहा हंसा, जे घुट्टति इह गुरु-गुण-समिद्धा / दोसे अ विवज्जति, तं जाणसु जाणियं परिसं // ५२–वह परिषद् (श्रोताओं का समूह) तीन प्रकार की कही गई है। (1) विज्ञपरिषद् (2) अविज्ञपरिषद् और दुर्विदग्ध परिषद् / विज्ञ----ज्ञायिका परिषद् का लक्षण इस प्रकार है जैसे उत्तम जाति के राजहंस पानी को छोड़कर दूध का पान करते हैं, वैसे ही गुणसम्पन्न श्रोता दोषों को छोड़कर गुणों को ग्रहण करते हैं। हे शिष्य ! इसे ही ज्ञायिका परिषद् (समझदारों का समूह) समझना चाहिए। ५३–प्रजाणिया जहा जा होइ पगइमहरा, मियछावय-सोह-कुक्कुडय-भूया। रयणमिव असंठविमा, प्रजाणिया सा भवे परिसा / / ५३-अज्ञायिका परिषद् का स्वरूप इस प्रकार है-जो श्रोता मृग, शेर और कुक्कुट के अबोध शिशुओं के सदृश स्वभाव से मधुर, भद्रहृदय, भोले-भाले होते हैं, उन्हें जैसी शिक्षा दी जाए वे उसे ग्रहण कर लेते हैं। वे (खान से निकले) रत्न की तरह असंस्कृत होते हैं / रत्नों को चाहे जैसा बनाया जा सकता है / ऐसे ही अनभिज्ञ श्रोताओं में यथेष्ट संस्कार डाले जा सकते हैं। हे शिष्य ! ऐसे अबोध जनों के समूह को अज्ञायिका परिषद् जानो / ५४–दुन्विअड्डा जहा न य कत्थई निम्मानो, न य पुच्छइ परिभवस्स दोसेणं / वस्थित्व वायपुण्णो, फुट्टइ गामिल्लय विअड्ढो।। ५४--दुविदग्धा परिषद् का लक्षण-जिस प्रकार अल्पज्ञ पंडित ज्ञान में अपूर्ण होता है, किन्तु अपमान के भय से किसी विद्वान् से कुछ पूछता नहीं। फिर भी अपनी प्रशंसा सुनकर मिथ्या. भिमान से वस्ति-मशक की तरह फूला हुआ रहता है। इस प्रकार के जो लोग हैं, उनकी सभा को, हे शिष्य ! दुर्विदग्धा सभा समझना। विवेचन-पागम का प्रतिपादन करते समय अनुयोगाचार्य को पहले परिषद् की परीक्षा करनी चाहिए, क्योंकि श्रोता विभिन्न स्वभाव के होते हैं / इसीलिए सभा के तीन भेद किए हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003499
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMadhukarmuni, Kamla Jain, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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